#आत्मनिर्भर
कहने, सुनने और पढ़ने में बहुत अच्छा लगता है। आत्म निर्भरता का संबंध आपकी आवश्यकताओं पर निर्भर करता है।
मेरे स्वयं के #आत्मनिर्भर होने की एक अजीब वाकया (दास्तां) है ।
बचपन में हमारे यहां की आर्थिक स्थिति ढीक ढाक ही थी,सब कुछ सामान्य जीवन था। चूंकि महत्वकांक्षाएं ज्यादा नहीं थी तो बचपन भी अच्छी तरह से खेल कूद में गुजर रहा था। चूंकि हम लोग वैश्य परिवार से हैं और दुकानदारी ही आजीविका का मुख्य स्रोत रहा है।
10 वर्ष की उम्र का स्कूल में कक्षा 5 का छात्र था , परीक्षा खत्म होने के बाद जब खाली समय रहता था तो में और मेरे छोटे भाई ने मिलकर अपने घर के बाहर थोड़ी छाया करके केवल 40 रु का सामान खरीद कर दुकान लगा ली ।हम लोगों की इस छोटी सी दुकान पर उस समय के अनुसार गोली,विस्किट,मीठी सुपारी तथा दादी के हाथों से बने हुए लाई(परमल) के लड्डू आदि सामान रहता था। दुकान भी सिर्फ 2 ईंटो के ऊपर एक लकड़ी का तख्त रखकर तैयार कर लिया करते थे।
पांच, दस पैसों की बिक्री करते हुए शाम तक 40 रुपये की दुकानदारी में 7 रुपये की पहली कमाई हुई । पूरे दिन मन लगाकर भरी धूप में हम लोग अपनी दुकान गर्मियों की छुट्टियां खत्म होने तक चलाते हुए लगभग200/300रू जमा कर लेते थे।
मुझे लगता है कि भारत की 80% जनता सदैव आत्मनिर्भर थी। जो मेहनत ,मजदूरी छोटे व्यापार कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण हमेशा करते रहे । अब तक किसी भी सरकारों की रहनुमाई सुविधाओं पर आश्रित कभी नही थे। लेकिन इस आपदा काल में सरकारों को सरपरस्त बनने की जरूरत है ।आज भारत की जरूरतमंद जनता सरकारों से यही उम्मीद ,अपेक्षा रखती है कि आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरल,सहज साधन उपलब्ध कराएं ताकि हम सब आत्म निर्भर बन सकें और हम सबका दायित्व है कि सरकार द्वारा जनहित के कल्याण के लिए जो भी प्रयास किए जा रहे हैं, उनको समझ कर मेहनत और लगन से कार्य करें जिससे अपने साथ साथ समाज व देश की उन्नति में सहायक बन सकें।