संजीव जैन's Album: Wall Photos

Photo 2,475 of 15,066 in Wall Photos

अथर्ववेद में परिवार की कल्पना करते हुए कहा गया है, अनुव्रतः पितुः पुत्रो मात्रा भवतु संमनाः। जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम्‌॥ अर्थात पिता के प्रति पुत्र निष्ठावान हो। माता के साथ पुत्र एकमन वाला हो। पत्नी पति से मधुर तथा कोमल शब्द बोले। परिवार कुछ लोगों के साथ रहने से नहीं बन जाता। इसमें रिश्तों की एक मज़बूत डोर होती है, सहयोग के अटूट बंधन होते हैं, एक-दूसरे की सुरक्षा के वादे और इरादे होते हैं। हमारा यह फ़र्ज़ है कि इस रिश्ते की गरिमा को बनाए रखें। हमारी संस्कृति में, परंपरा में पारिवारिक एकता पर हमेशा से बल दिया जाता रहा है। परिवार एक संसाधन की तरह होता है। परिवार की कुछ अहम ज़िम्मेदारियां भी होती हैं। इस संसाधन के कई तत्व होते हैं।[ दूलनदास ने कहा है, दूलन यह परिवार सब, नदी नाव संजोग। उतरि परे जहं-तहं चले, सबै बटाऊ लोग॥[2] जैनेन्द्र ने इतस्तत में कहा है, “परिवार मर्यादाओं से बनता है। परस्पर कर्त्तव्य होते हैं, अनुशासन होता है और उस नियत परम्परा में कुछ जनों की इकाई हित के आसपास जुटकर व्यूह में चलती है। उस इकाई के प्रति हर सदस्य अपना आत्मदान करता है, इज़्ज़त ख़ानदान की होती है। हर एक उससे लाभ लेता है और अपना त्याग देता है