संजीव जैन's Album: Wall Photos

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यह कहानी गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़ी एक सच्ची घटना पर आधारित हैं।

स्त्री तब तक “चरित्रहीन” नहीं हो सकती ….. जब तक पुरुष चरित्रहीन न हो।
~ गौतम बुद्ध।

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संन्यास लेने के बाद गौतम बुद्ध ने अनेक क्षेत्रों की यात्रा की। एक बार वह एक गांव में गए। वहां एक स्त्री उनके पास आई और बोली – आप तो कोई “राजकुमार” लगते हैं। क्या मैं जान सकती हूँ … कि इस युवावस्था में गेरुआ वस्त्र पहनने का क्या कारण है?

बुद्ध ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि – … “तीन प्रश्नों” के हल ढूंढने के लिए उन्होंने संन्यास लिया।

बुद्ध ने कहा – … हमारा यह शरीर जो युवा व आकर्षक है, पर जल्दी ही यह “वृद्ध” होगा … फिर “बीमार” और … अंत में“मृत्यु” के मुंह में चला जाएगा।
मुझे “वृद्धावस्था” – “बीमारी”व “मृत्यु” के कारण का ज्ञान प्राप्त करना है।

बुद्ध के विचारो से प्रभावित होकर उस स्त्री ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया – शीघ्र ही यह बात पूरे गांव में फैल गई। गांव वासी बुद्ध के पास आए व आग्रह किया कि वे इस स्त्री के घर भोजन करने न जाएं।

क्योंकि वह “#चरित्रहीन” है!!
बुद्ध ने गांव के मुखिया से पूछा? क्या आप भी यह मानते हैं कि वह स्त्री “चरित्रहीन” है?

मुखिया ने कहा कि मैं शपथ लेकर कहता हूं कि वह बुरे चरित्र वाली स्त्री है। आप उसके घर न जाएं। बुद्ध ने मुखिया का दायां हाथ पकड़ा … और उसे ताली बजाने को कहा … मुखिया ने कहा – … “मैं एक हाथ से ताली नहीं बजा सकता” – क्योंकि मेरा दूसरा हाथ आपने पकड़ा हुआ है।

बुद्ध बोले – … इसी प्रकार यह स्वयं चरित्रहीन कैसे हो सकती है?

जब तक इस गांव के “पुरुष चरित्रहीन” न हों। अगर गांव के सभी पुरुष अच्छे होते तो यह औरत ऐसी न होती इसलिए इसके चरित्र के लिए यहां के पुरुष जिम्मेदार हैं।

यह सुनकर सभी “#लज्जित” हो गए।

लेकिन आजकल हमारे समाज के पुरूष “लज्जित” नही“गौर्वान्वित” महसूस करते है।
क्योकि यही हमारे “पुरूष प्रधान” समाज की रीति एवं नीति है।

सदैव सकारात्मक सोचो –
सकारात्मक सोचने से ही अपना व अपने घर समाज और देश का विकास होगा। सदैव ही नारी का सम्मान करें।