नही करती अब परवाह मैं
किसी के भी तानों की, उल्हानो की
वो दिन अब लद गये
जब आँखों के कोने पानी था
छुप कर् के मैं रोती थी
होठों पर ले नकली मुस्कान
अब रहती हूँ मस्त अपने में
निहारती हूँ खुद को , सँवारती हूँ खुद को देख आईने में
भजन भी मैं गाती हूँ तो गजल भी मै गाती हूँ
जरूरत नही मुझे रिझाने की अब सजन को
नजर मुझे आता है आँखों में उनकी अपना अक्स
मेरे बिन कहे पढ़ लेते वो मेरी जुबाँ
काम वो करती हूँ मैं जो मुझे भाता है
कलम भी चलाती हूँ तो कड़छी भी चलाती हूँ
पार्लर भी जाती हूँ तो मंदिर भी जाती हूँ
बगियाँ मे देख तितली बच्चो सी मचल जाती
सब कुछ होते भी कमी महसूस करती हूँ
अपने दिल के टुकड़ों की
बात उनसे करके कुछ पल , हो लेती हूँ खुश मैं
देख कर खुश उनको भूल जाती हूँ गम अपने
40 के पार करके मैं जीवन की नयी पारी खेल रही मैं
जीवन के एक एक पल को जी रही मैं
जो नही कर पायी अभी तक
वो सब कर रही मैं
*40 को पार करने का गम नही कर रही मैं ।*