This poem is dedicated to my # all lovely brothers #
रक्षाबन्धन
सावन की मधुर फुहारों के संग
पूर्णिमा का दिन आया है ,
भाई बहन के प्रेम के रिश्ते का
मधुर संदेशा लाया है ।
राखी का त्योहार है आया
सबके मन में हर्ष समाया ,
रहे अटूट ये बन्धन प्यारा
उल्लासों का रस बरसाया ।
रेशम की डोरी में लिपटा
सारे जहाँ का प्यार है ,
ख़ुश है बहना एैसे जैसे
मिल गया सारा संसार है ।
जब तक रवि, शशी है जग में
अौर कबीर की साखी ,
तब तक रक्षा करे तुम्हारी
नेह पगी यह राखी ।
नहीं चाहिए मुझको दौलत
ना हक़,माँ - बाप की जायदाद पर ,
नहीं भेजना मुझको तोहफ़े
किसी तीज त्योहार पर ।
पर तुम इस कच्चे धागे का
मान सदा रख लेना ,
राखी के दिन इस बहना को
याद ज़रा कर लेना ।
चाहे पूरे वर्ष मुझे तुम
याद कभी मत करना ,
पर राखी के दिन भईया
तुम बचपन याद तो रखना ।
सिर पर हाथ सदा तुम रखना
और न मॉंगू कोई धन ,
जीवन में तुम सदा निभाना
भाई बहन का ये बन्धन ।
थोड़ा सा हक़ देना मुझको
आँगन और चौबारों पर ,
जहाँ पर मेरा बचपन बीता
आऊँ कभी मैं भी उस घर ।
मॉं के प्यार ,पिता के संस्कार की
लाज हमेशा रख लेना ,
मैं तो हुयी परायी भईया
ऑंगन पराया मत करना ।
नहीं चाहिये हीरे मोती
ना कोई अनमोल रत्न,
आशीर्वाद मिले भाई से
और मिले बस अपनापन ।
रिश्ते की यह डोर है न्यारी
बना रहे हरदम यह साथ ,
तुम पर कोई न संकट न आये
मॉंगू यही दुआ मैं आज |
प्रेम और समर्पण के धागे से
बँधा हुआ है यह त्योहार,
नि:स्वार्थ प्रेम अनमोल है जग में
जो इस रिश्ते का आधार |
हो परम्परा का मान सम्मान
लेन देन न बने व्यापार,
मोल नहीं कोई इस बन्धन का
मन में है यही उद्गगार ।