मैंने सुना है कि एक राजनेता के मस्तिष्क का आपरेशन हुआ। बड़ा आपरेशन था। तो उसकी खोपड़ी में से मस्तिष्क निकालकर सफाई की जा रही थी मस्तिष्क की।
राजनेता का मस्तिष्क, सफाई तुम सोच ही सकते हो कि भारी सफाई करनी पड़ेगी! इतनी गंदगी और कहां इकट्ठी होगी? इतनी चोरी-बेईमानी, इतना इरछा-तिरछा-पन...। जब तक चिकित्सक उसके मस्तिष्क की सफाई कर रहे थे, एक आदमी आया और उसने कहा कि आप यहां लेटे क्या कर रहे हैं, आपका तो चुनाव हो गया है, आप तो प्रधानमंत्री बन गए। तो वह नेता तो एकदम से उठ खड़ा हुआ।
प्रधानमंत्री कोई बन जाए तो मुर्दा उठ खड़ा हो। वह तो एकदम चला! डाक्टर चिल्लाया कि भाई आप कहां जाते हैं, मस्तिष्क तो लगा देने दें! उसने कहा: अब मुझे मस्तिष्क की क्या जरूरत? अब मैं प्रधानमंत्री हो गया हूं। अब मस्तिष्क तुम रखो।
राजनेता को न तो मस्तिष्क की जरूरत है, न हृदय की। सच तो यह है अगर मस्तिष्क हो, तो राजनेता होता? तो कुछ और सार्थक काम करता--कवि होता, चित्रकार होता, मूर्तिकार होता, संत होता, नर्तक होता, गायक होता; इस जीवन को कुछ सौंदर्य देता; इस जीवन में कुछ काव्य जोड़ता; इस जीवन को कुछ रंग देता। राजनेता होता? हृदय होता, तो कैसे राजनेता हो पाता? तो करुणा होती; प्रेम होता। राजनीति असंभव हो जाती। उनके पास तो हृदय नहीं है।