चिंतनधारा : आज पर्वाधिराज दसलक्षण पर्व शरू हुआ । आज हमारे यहाँ मंदिरजी में सुबह से पूजा भक्ति प्रवचन वगैरे का सभी मुमुक्षुओंने लाभ लिया । आज मंदिरजी में विद्वान् पंडित संजीवजी गोधाजी क्रमबद्धपर्याय विषय पर बहोत सूंदर स्पष्टीकरण किया और वो सुनकर मुझे अधिक आनंद हुआ क्योंकि कल ही उसपर एक मुमुक्षुने मुझे पूछा था कि क्रमबद्धपर्याय का आगम में कहा उल्लेख है वो आप कृपया मुझे बताये क्योंकि हम जो आगम प्रमाण हो वो ही बात मानते है , उनके सवाल के जवाब में मैंने लिखा था कि "में आगम तो नहीं पढ़ा लेकिन मेरे लिए तो पूज्य श्री सद्गुरुदेव के वचन ही आगम है और मुझे उनके वचनों पर अटूट विश्वास है ।" आज जैसे ही मुझे आगम प्रमाण होने का जानकारी मिला तो मुझे अति प्रसन्नता हुयी क्योंकि कल ही चर्चा में यही बात उठी थी । संजीवजी गोधाजी ने स्पस्ट किया की कलिकालसर्वज्ञ कुंदकुन्दाचार्य देव के "समयसार " ग्रंथ की सर्वविशुद्ध ज्ञानअधिकार -९ की गाथा ३०८ से ३११ में आत्मख्याति में अमृतचंद्राचार्य देव ने क्रमबद्धपर्याय पर टीका में बहोत अच्छा स्पष्टीकरण किया है जिसको पूज्यश्री गुरुदेवने प्रकाश में लाकर जिव के अकर्त्तापनाका सचोट ज्ञान कराया । गाथा पर गहन चिंतन करे तो सारी शंका दूर हो जायेगी । जैसे मेरे लिए ही आज मंदिरजी में क्रमबद्धपर्याय का विषय सहज आ गया ऐसा मुझे अंदर महसूस हुआ ।