ॐ ह्रीं श्री उत्तम क्षमा धर्मांगाय नम;
सोचा कभी
क्यों क्षमा धर्म को मिला प्रथम स्थान
दसलक्षण धर्म में ?
क्षमा उद्योतक है क्षमता का
क्षमा शब्द है स्त्रीलिंग
बाकी सभी मार्दव-आर्जव आदि है पुल्लिंग
मानो सन्देश स्वत: ही दे रहा क्षमा शब्द
क्षमा जिसने धारण कर ली
बाकी के नौ धर्म आ जाते बालवत
जैसे संतान हो सभी क्षमा की ....
मनुष्य की अज्ञानता के कारण ही
नहीं होता स्वरूप प्रकट
अज्ञानता का मैं तो मानता मुख्य दो ही कारण
एक तो पूर्व के संस्कार
दूसरा निमित से प्रभवित होकर हो जाता अज्ञानी
जिसमे क्रोध है सबसे प्रथम ऐसा विकार
जो परिस्थितिवश आ जाता बिना बुलाये
जिस पर नियंत्रण पाने का क्षमा ही योग्य उपाय
इसलिए क्षमा को रखा प्रथम तल पर ....
क्षमा आती नहीं - बुलाना पड़ता पुरुषार्थ से अपने
इसीलिए ऋषि मुनियों ने
क्षमा वीरस्य भूषणम कहा
क्रोध हो जाता किसी भी प्रतिकुललता के मिलने पर
जरुरी नहीं
वैसी स्थिति बनने में तुम हो कारण
बिना बुलाये/बताये भी बन जाती ऐसी स्थिति
बस क्षमा रूपी शास्त्र से
रखो स्वयं पर नियंत्रण
अज्ञानता जो बननी थी परिस्थितिवश
उस पर पा लोगे तुम नियन्त्रण ....
स्वयं से क्रोध के उत्पन्न होने के मुख्य कारण
इच्छा पूर्ति / मानसिक अस्वस्थता / शारीरक अस्वस्थता / तामसिक भोजन
जिन्हें हम अपने विवेक से / प्रवृति से
कर सकते उसकी तीव्रता कम
सात्विक भोजन से / इच्छाओं को सीमित करके
शरीर को स्वस्थ रखके / पूर्व निर्धारित दिनचर्या से ...
क्षमाधारी व्यक्ति के
सहष्णुता / सहनशीलता / शांति ला हो जाता विकास
नहीं फिर उसके जीवन में रहता
संक्लेश का काम
अज्ञानता की ओर बढ़ने से हो जाता बचाव
होता जाता वो निर्विकार
अर्थात प्रशस्त कर लेता वो अपना
आत्मानुभूति का मार्ग
धर्मी व्यक्ति का
इसीलिए क्षमा को प्रथम लक्षण कहा ...
नमो जिनाणं !