आचार्य श्री के Real brother ओर मुनि श्री योग सागर जी महाराज ने कहा कि पुण्य मैं कमी थी जो आज आचार्यश्री के प्रवचनों का लाभ नहीं ले पाए! उन्होंने कहा धर्म की परिभाषा आपने पूज्य गुरूदेव के मुख से खूव सुना हें अहिंसाधर्म ही एक श्रेष्ठ धर्म हें! आज त्याग धर्म हें पाप के व्याज को चुकाता हैं वह दान कहलाएगा! जव तक आप पूर्णतया पाप को नहीं त्यागोगे तव तक आपका त्याग धर्म कोई काम का नहीं! मुनि श्री ने एक कथानक के माध्यम से दान की महिमा वताते हुये कहा कि एक सेठ दान देते देते निर्धन होगया, लेकिन उसने अप्रसन्नता व्यक्त नहीं की! वह अपने कर्तव्यों की पूर्ती में लगा रहा! एक दिन उस सेठ का पुराना मित्र आया और उसने अपने उस मित्र को सहायता करने के लिये उसने कोशिस की! वह सेठ अपने दानों को एक कापी में लिखा करते थे! एक पलडे़ पर सोना/ और दूसरे पलडे पर वह डायरी रख दी लेकिन वह मित्र की अच्छाईयां के अनुपात में वह सोना भी कम पड़ गया! दया करुणा को धारण करने वाला वयक्ती संसार में अहिंसा को याद कर दया की ओर दृष्टि कर रहा हें! इस अवसर पर मुनि श्री विऩम सागर जी महाराज ने संवोधित करते हुये कहा कि दयोदय और दया का उदयप्रसूत होता हैं, दर्शन और धर्म प्रत्येक जीव के हृदय में विराजमान हें! जैन दर्शन में जिन वनने की शैली वनने का नाम हें और धर्म आचरण पद्धति का नाम हें! मुनि श्री ने कहा कि धर्म तो एक मात्र अहिंसाधर्म ही हें उस अहिंसाधर्म को पालन करने के लिये ये दस धर्म उत्तम क्षमा से प्रारंभ हुआ हें और आज त्याग करने का धर्म है!मुनि श्री ने कहा कि गाय के प्रति आचार्य गुरूदेव के मन में २० वर्ष पहले की करूणा का वर्णन करते हुये कहा कि कडाके की ठंड में दिसंम्वर का महिना तिलवारा घाट में दयोदय महासंघ की स्थापना हुई थी एवं गौ शाला की विल्गिंग का निर्माण कार्य शुरु हुआ और उसमें तराई हुई थी और उसमें आचार्य श्री रहे जव उनसे कहा गया तो उनका जबाब था कि जव हम ही परिषय नहीं सहेंगे, परिषयविजयी नही वनेंगे तो श्रावक कैसे आएंगे!
उन्होंने कहा कि जव तक आप पीजा वर्गर आदि को तो नहीं छोड़ पा रहे हें??? और गौ मूत्र और गोवर के उत्पादन की वात करना वेमानी हैं! उन्होंने कहा कि आजकल पैकेजिंग फूड मांसाहारी होते जा रहे हैं और आप लोगों के वच्चे खूव चाव से खा रहे हें!जव किसी साधक का पुण्य काम करता हैं तो उनकी संसार में रुकने की कोई व्यवस्था नहीं वनती! चाहे राम को देख लो, उनको अपना घर छोड़ना पडा़ और रावण की व्यवस्था को देखीये उसका पापानुबंधी पाप वड़ रहा था उसने सोने की पूरी लंका वना दी! जिसको अहिंसाधर्म का पालन करना होता हैं उसके ऊपर कितनी कंडीसन लगा दी??? पुण्यात्माओं और धर्मात्माओं को देखीये एक एक ग्रास के ऊपर देखना पड़ता हें!और जरा सा वाल आ जाए या कोई छोटा सा जीव दिख जाए तो अंतराय करना पडता हैं! मुनि श्री ने कहा कि जव तक आप चमढे की वस्तुओं का त्याग नहीं कर सकते/ वाजार की पैकिंग वस्तुओं जिसमें गौ मांस की परत होती हें, उन सभी का त्याग करना आवश्यक हैं! तभी आपका त्याग धर्म और गौ रक्षा का यह सम्मेलन सार्थक होगा !