राष्ट्र-संतों के एक मंच पर आने से कर्नाटक हुआ धन्य
मंच एक, हम एक, आप भी रहें एक - राष्ट्र-संत ललितप्रभ
दिगम्बर-श्वेताम्बर संतों ने एक-दूसरे के पैरों में झुककर की क्षमायाचना
बैंगलोर। बैंगलोर के लिए 10 सितम्बर, रविवार का दिन ऐतिहासिक अवसर बनकर
आया जब सामूहिक क्षमापना के अवसर पर दिगम्बर-श्वेताम्बर राष्ट्र-संतों के
मिलन को एक ही मंच पर देखने के लिए कर्नाटक जैन भवन में जनता का सैलाब
उमड़ पड़ा। भवन का कौना-कौना सत्संगप्रेमियों से लबालब था। कर्नाटक जैन भवन
पहुँचने पर वरिष्ठ आचार्य श्री पुष्पदंत सागर जी महाराज, मुनि प्रमुख
सागर, मुनि पूज्य सागर और संत श्री ललितप्रभ जी, संत श्री चन्द्रप्रभ जी
और मुनि श्री शांतिप्रिय सागर जी महाराज ने एक-दूसरों की भव्य अगवानी की।
जैन महिला मण्डल एवं वर्षायोग समिति की सदस्याओं ने संतों पर अक्षतों एवं
फूलों से वर्षा की। संतों का मंगलकलशों से बधावणा हुआ।
धर्म सभा को संबोधित करते हुए संत श्री ललितप्रभ जी ने कहा कि हमने पिछले
2500 सालों में धर्म-मजहब-पंथ-संप्रदायों के नाम पर अलग होकर खोया ही
खोया है, अगर अब हम केवल 25 साल के लिए एक हो जाए तो पूरी दुनिया में
प्रेम और शांति का परचम लहरा सकते हैं। श्वेताम्बर और दिगम्बर संतों को
एक मंच पर बैठा देखकर आज भगवान महावीर को सबसे ज्यादा खुशी हो रही होगी।
अगर भगवान ने हमें दो आँखें दी हैं तो उसमे एक श्वेताम्बर की है और दूसरी
दिगम्बर की है। व्यक्ति अपने दिल दिमाग को जितना विशाल करेगा वह इंसानियत
का उतना ही अधिक भला कर पाएगा। संतप्रवर ने कहा कि श्वेताम्बर समाज 8 दिन
के पर्युषण मनाता है और दिगम्बर समाज 10 दिन के। आने वाला कल ऐसा हो कि
पूरा जैन समाज मिलकर 18 दिन के पर्युषण मनाएं।
सच्चा संत वही जो समाज को जोड़े-संतश्री ने कहा कि जो समाज को जोड़े वही
सच्चा संत है। तोडने वाला कभी सच्चा संत नहीं हो सकता। हम समाज में ऐसे
संतों को बार-बार बुलाए जो एकता में विश्वास रखते हो। हम समाज को नारंगी
की बजाय खरबूजा बनाएं जो बाहर से भले ही अलग दिखाई देता है, पर छिलके
उतरते ही एक हो जाता है। उन्होंने कहा कि बैंगलोर में जो धार्मिक समरसता
का जो माहौल बना है, उसे देखकर हम अभिभूत हैं। भगवान करे इसे कभी नजर न
लगे।
इस अवसर पर संत श्री चन्द्रप्रभ जी ने कहा कि बैंगलोर आकर हमें आचार्य
पुष्पदंतसागर जी महाराज के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। ऐसा लगता है
हमारा कर्नाटक की यात्रा करना सार्थक हो गया। आचार्यप्रवर से हमें पिता
जैसा प्यार मिला जो हमें हमेशा याद रहेगा। उन्होंने कहा कि भक्ति सीखनी
हो तो मंदिरमार्गीयों से सीखो, क्रिया सीखनी हो तो स्थानकवासी-तेरापंथी
से सीखो और तप-त्याग सीखना हो तो दिगम्बरों से सीखो। जब सभी मिलते हैं
तभी जैन धर्म साकार होता है। उन्होंने कहा कि जैन धर्म का सार है क्षमा।
चोट पहुंचाकर क्षमा मांगना सरल है, पर चोट खाकर भी क्षमा करना कठिन है।
जिस दिन हम दुश्मन के घर की 5 सीढ़ियां चढ़कर उससे माफी मांग आएंगे समझ
लेना उस दिन हमें घर बैठे सम्मेदशिखर और पालीताणा की यात्रा का पुण्य मिल
जाएगा।
इस अवसर पर वरिष्ठ दिगम्बराचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज ने अपने
उद्बोधन में कहा कि इन दो भाई संतों की सबसे बड़ी बात यह है कि ये जो
बोलते हैं उन्हें जीवन में जीते भी हैं। इनकी विनम्रता और शालीनता देखकर
मैं गदगद हूँ। उन्होंने कहा कि जब एक ही रेस्टोरेंट में अलग-अलग भोजन
करने वाले बैठकर खा सकते हैं तो हम एक जगह क्यों नहीं मिलकर धर्म कर सकते
हैं। उन्होंने कहा कि जब हमारा दिल मिल जाता है तब क्षमा साकार हो जाती
है। उन्होंने कहा कि अब हमें पंथ-परम्पराओं में न द्वार खोलने हैं न
दरवाजे वरन प्यार से गले मिलने का काम करना है। उन्होंने कहा कि धर्म की
नींव है टूटे हुए दिलों को जोडना एवं जुडना। अपरिचित व्यक्ति से
क्षमायाचना करना आसान है, पर आपस में कोर्ट केस चलने वाले दो लोगों के
द्वारा आपस में क्षमायाचना करना तीस उपवास करने से भी बड़ी तपस्या है।
हमसे उससे क्षमा मांगे जिससे हमारी बोलचाल नहीं है ऐसा करना मिच्छामी
दुक्कड़म् के पत्र या एसएमएस करने से भी ज्यादा लाभकारी होगा।
सामूहिक क्षमायाचना की-सामूहिक क्षमापना के पावन अवसर पर संतों ने
एक-दूसरे के पाँवों में झुककर क्षमायाचना की।
कार्यक्रम में क्षुल्लक पुकार सागर जी, भटटारक लक्ष्मीसेना स्वामी,
कर्नाटक जैन भवन के टी जी दोडामनी, देवेन्द्र स्वामी, त्यागी सेवा समिति
के अनिता सुरेन्द्र कुमार, चातुर्मास समिति के संरक्षक सुरेन्द्र हेगड़े,
गोम्मटेश्वर बाहूबलि मस्तकाभिषेक के कार्यकारी अध्यक्ष जितेन्द्र जैन,
उपाध्यक्ष अनिल सेठी, दादावाड़ी अध्यक्ष महेन्द्र रांका, समाज सेवी प्रदीप
जेठिया इरोड, समाज सेवी निर्मल जैन आदि अनेक विशेष गणमान्य लोग उपस्थित
थे।