आज हम सब कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का सामना कर रहे हैं,लाकडाऊन के चलते डरें हुए हैं और बहुत ही आवश्यक कार्य हो तो घर से बाहर निकल रहें हैं।पालन कर रहे हैं........
"सोशल डिस्टन्सिंग अर्थात सामाजिक दूरी। लेकिन हम लोग इसे गलत ढंग से पालन कर रहे है, हम सभी को सामाजिक दूरी बना के रहने और उसका पालन करने को कहा गया है। लेकिन हम लोगों ने भावनात्मक और व्यक्तिगत दूरी बनाना शुरू कर दिया है, जो सही नहीं है।
जैसे हमारे समाज और आस पड़ोस में कोई बीमार हो जाता है या किसी के घर में कोई मृत्यु हो जाती है, तो उस समय व्यक्ति या उसके परिवार को हमारी जरुरत भावनात्मक और व्यक्तिगत तौर पर होती है। पहले हम इंसानियत के तौर पर हर तरह से सहयोग करते थे, खाने पानी से लेकर भावनात्मक तौर तक, फिर अभी क्यों हम सब उन चीज़ों से कतराने लगे है ?
अभी भी तो यह सब संभव है। सिर्फ सामाजिक दूरी बनाकर, जैसे पूरे विश्व मे लोग इस बीमारी से लड़ रहे है लेकिन उन सब के बीच हमारे डॉ और सभी स्वस्थ कर्मचारी न जाने कितने अनजान लोगों की सेवा में लगे हुऐ है। और वो उनको स्वस्थ करने के साथ साथ उन्हें मानसिक , भावनात्मक , एवं शारीरिक रूप से भी उनका ध्यान रख रहे है। वो भी इंसानियत के तौर पर। ऐसे पुलिस कर्मचारी, तकनीकी स्टाफ, सेना, सफाई कर्मचारी और ना जाने कितने ऐसे लोग देश की सेवा मे लगे हुए है। इसका मतलब यह थोड़ी है, कि वो अपने परिवार वालो से दूर हो गए है या उनका रिश्ता ख़त्म हो गया है उनसे? नहीं ! वो सब लोग अपने परिवार वालों से जुड़े हुए है, सामाजिक दूरी के साथ । बस इसी तरह हमें भी सिर्फ सामाजिक दूरी का पालन करते हुऐ उनसे जुड़े रहना है, दूर नहीं होना है ।
और अगर हमने यह " सोशल डिस्टन्सिंग " का सही मतलब नहीं समझा तो आने वाले समय मे इंसानियत और रिश्तें दोनों ख़तम हो जाएंगे, क्यूंकि, अब हमें ऐसे नियमों का पालन करते हुए, आगे बढ़ना पड़ेगा।
'' तो अब जब भी घर से वाहर जाएँ तो सोशल डिस्टन्सिंग मतलब सामजिक दूरी का पालन करें, और यदि आपको संक्रमण के कोई लक्ष्क्षण दिखाई दें तो घर पर ही रहें और शासन,प्रशासन द्वारा बताए गए नियमों का पालन करें. "