पितृपक्ष (कनागत) सबसे बड़ा कर्मकांड
आश्चर्य होता है जब पंडित जी कहते हैं कि साल में एक पखवाड़ा सारी की सारी आत्माएं धरती पर उतरती है और अपने घर को जाती है. और वो भी सिर्फ हिन्दू आत्माएं, बाक़ी सब ऊपर ही पड़ी रहती हैं
वो भी एक ही दिन नहीं, बल्कि उसी तिथि को, जिस दिन उसकी मृत्यु हुई थी.
ऊपर बैठे-बैठे कितना हिसाब रखना पड़ता होगा ना उन आत्माओं को को, वो भी तब, जब उनके पास पंचांग तक भी नहीं होता होगा
वे अशरीरी आत्माएं बाकी सारे साल भूखी रहती है और उसी दिन उन्हें खाने को हलुआ पूरी मिलती है, वो भी किसी पंडित के पेट में से. तो क्या पंडित अगले दिन पोटी नहीं जाता होगा?
यही नहीं, उन अशरीरी आत्माओं को पहनने-ओढने का सामान और जेबखर्च भी उन्हीं पंडित के माध्यम से ही मिल जाता है
जैसे पंडित ना हुए, दलाल हो गए सारी आत्माओं के
जागो भाईयों