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शानदारः भारत में रहकर 1200 गायों की सेवा कर रही ये जर्मन महिला
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जर्मनी की रहने वाली फ्रैड्रीक इरीना ब्रूनिंग मथुरा में रहकर 1200 गायों की देखभाल कर रही हैं. इनमें से अधिकतर गायें बीमार या घायल हैं. इन गायों को दूध देना बंद करने के बाद सड़कों पर छोड़ दिया गया था.
इरीना साल 1978 में पर्यटक के तौर पर भारत आईं थीं. तब उन्हें भी अंदाज़ा नहीं था कि भविष्य में क्या होने वाला है.

मथुरा में अपने जीवन के बारे में बात करते हुए इरीना ने बताया, “मैं एक पर्यटक के तौर पर भारत आई थी और मुझे अहसास हुआ कि मुझे आध्यात्मिक गुरू की ज़रूरत है. आध्यात्मिक गुरू की खोज में ही मैं राधा कुंड चली गई. ”

इरीना ने अपने एक पड़ोसी की सलाह पर तीस-पैंतीस साल पहले एक गाय खरीदी थी और तब से उनका जीवन पूरी तरह बदल गया.

इरीना ने हिंदी सीखी और गायों के बारे में लिखी गईं किताबें पढ़ीं. वो कहती हैं, “मैंने देखा कि बहुत से लोग अपनी दूध न देने वाली गायों को छोड़ रहे थे. इन गायों को सुरक्षा और देखभाल की ज़रूरत थी. कोई भी उनकी देखभाल करने के लिए तैयार नहीं था.”

मथुरा में सुदेवी माताजी के नाम से जानी जाने वाली इरीना ने बारह साल पहले सुरभि गौसेवा निकेतन के नाम से एक गौशाला खोली.

आज इरीना की गौशाला में चार सौ गायें और आठ सौ बछड़े हैं. अब उनके पास और अधिक गायों को रखने के लिए जगह नहीं हैं.

एक बार गाय उनकी गौशाला में आ जाती है तो वह उसकी पूरी देखभाल करती हैं.

इरीना कहती हैं कि अब वो सिर्फ़ बीमार, अपंग या बुज़ुर्ग गायों को ही अपनी गौशाला में रखती हैं और बाकी गायों को अन्य गौशालाओं में भेज देती हैं.

वो कहती हैं कि एक बार जब कोई बीमार या घायल गाय को उनके आश्रम के बाहर छोड़ जाता है तो उसे उन्हें अंदर लेना ही होता है क्योंकि वो किसी बीमार या घायल गाय के लिए ना नहीं कह सकती हैं.
अंधी या बुरी तरह से घायल गायों, जिन्हें अधिक देखभाल की ज़रूरत होती है, को विशेष शेड में रखा जाता है.

गौशाला चलाने के लिए इरीना को लोगों से दान भी मिलता है लेकिन ये काफ़ी नहीं होता है.

गायों की दवाओं, चारे और कर्मचारियों के वेतन पर हर महीने करीब 22 लाख रुपए का खर्चा आता है.

इरीना कहती हैं कि बर्लिन में उनकी संपत्ति से जो किराया मिलता है उसे वो गायों की देखभाल पर खर्च कर देती हैं.

पहले इरीना के पिता उनके लिए पैसे भेजते थे लेकिन अब वो रिटायर हो गए हैं और वरिष्ठ नागरिक हैं. इरीना हर साल उनका हालचाल जानने बर्लिन जाती हैं.

इरीना कहती हैं, मुझे स्थानीय स्तर पर कोई अधिकारिक मदद नहीं मिल रही है बावजूद इसके किसी तरह काम चल रहा है.

इरीना कहती हैं कि वो अब इस गौशाला को बंद नहीं कर सकती हैं क्योंकि यहां 60 लोग काम करते हैं और उनका परिवार इसी से चलता है. वो कहती हैं कि मुझे गायों की देखभाल करनी है, यही मेरा परिवार हैं.

भारत सरकार ने इरीना को लंबी अवधी का वीज़ा नहीं दिया है और उन्हें हर साल वीज़ा लेना पड़ता है.

वो कहती हैं कि मैं भारतीय नागरिकता नहीं ले सकती क्योंकि ऐसा करने से मुझे बर्लिन की संपत्ति से जो किराया मिल रहा है वो बंद हो जाएगा.

इरीना बताती हैं कि उनके पिता भारत में जर्मनी के दूतावास में काम करते थे और उन्होंने अपने पिता से मिला सभी पैसा गौशाला में लगा दिया है.

इरीना जिस जज़्बे से गायों की सेवा कर रही हैं, हम उसे सलाम करते हैं.