मन व्यथित है, आज ध्यान, आराधन में भी मन नही लगा, बार बार उन निर्बल,असहाय गरीवों की सिसकियाँ ध्यान अपनी ओर बलात् ही खींच रहीं थी!
क्या ऊँची पहुँच, भारी भरकम पगार, बेहिसाब सुविधायें इन्हें निकम्मा नहीं कर रही है, है कोई इलाज इनकी संवेदनाओं को जगाने का.
ये सरकारी दामाद हैं ऊँची पहुँच है, खुद भी दबंग हैं, क्या बिगाड लेगा एक गरीब,लाचार सिवा अपनी किस्मत पर रोने के!!
मित्रो भगवान न करे कल हम सब भी इसी समस्या से रूबरू हो सकते हैं, सरकार इनका कुछ नहीं करेगी, वह तो इन्हें पाल रही है ,अगर कोई आबाज उठायेगा तो उसके खिलाफ पुलिस इनकी सहयोगी है, आप सब जानते है कि गरीब के साथ पुलिस का क्या सलूक होता है!
आज मन बहुत व्यथित है, माँ रच्छा करना मजबूर ,असहाय, गरीबों की!!