संजीव जैन's Album: Wall Photos

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जैसा कि जमादार मियाँ ने मुझे बताया...

नवरात्र का अवसर था। कोयला खान में काम करने वाले सभी लोग छुट्टियों में अपने घर जाने की तैयारी में थे। कुछ लोग चले भी गए थे। मैं भी अपने बीवी बच्चों संग मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा कोल खान से निकल कर मेन रोड पर सवारी के इन्तजार में था। रेलवे स्टेशन वहां से करीब 5 किमी की दूरी पर था। शाम होने को आ रही थी। मुझे चिंता इस बात की थी मेरे बीवी के अलावा मेरे साथ मेरी दो जवान बेटियां और एक 10 साल का बेटा था।
उस सड़क पर चहलकदमी थोड़ी कम थी। हमें स्टेशन भी जल्दी पहुंचना था। अब धुंधलका अँधेरा होने लगा था। तभी दूर से जयकारे की आवाज सुनाई दी। एक डीसीएम गाड़ी पर दर्जन भर नौजवान जय अम्बे, जय दुर्गे आदि का जयकारा लगाते आ रहे थे। हम लोगों को देख कर ही कोई भी पहचान सकता था कि मुसलमान हैं। मेरी दाढ़ी थी और मेरी बीवी बुर्का पहनी हुई थी।
एक तरफ ये सोच कर मैं संतुष्ट हो रहा था कि मेरे पडरौना के जंगल सिंगापट्टी में मेरा घर हिन्दू भाइयों के गाँव में है। कितना मिलजुल कर एक साथ रहते हैं हमलोग। कभी किसी ने मुझे भय का एहसास भी नहीं होने दिया। दूसरी तरफ मन सशंकित था कि साथ में दो बेटियां है और उधर से दूसरे कौम के नौजवान हैं। इसी सोच में डूबा था कि गाड़ी बिल्कुल हमारे पास आकर रुक गयी। अब जयकारा भी बंद हो गया था।
हम तो डर गए तभी एक नौजवान की आवाज आई। चाचा आप सबको कहाँ जाना है? मैंने कहा बेटा हमलोगों को रेलवे स्टेशन जाना है। उस नौजवान के अलावा और भी लड़कों ने निवेदन सहित कहा कि चाचा आप लोग इस गाडी में बैठ जाइये हम लोग भी वहीँ पास के बाजार में जा रहे हैं।
मन में शंका तो थी पर अँधेरा हो गया था दूसरी सवारी के आने का कोई ठिकाना नहीं था।
हमलोग एक-एक कर उस डीसीएम में बैठ गए। उसमें दुर्गा जी व अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां थीं। जगह कम थी पर उसी में एडजस्ट हो लिए। हमारे बैठने के बाद सभी नौजवान चुप हो गए। किसी ने भी जयकारा नहीं लगाया। मैं जहाँ खड़ा था पास में ही दुर्गा जी की मूर्ति थी। उनका चेहरा बिल्कुल मेरे सामने था। मिट्टी की उस मूरत में भी कितना तेज झलक रहा था। मैं तो सम्मोहित हो गया। सच बोलूं मेरी आस्था जागृत हो गयी। उन नौजवानों को देख कर और उनकी नेक नीयति के बारे में सोच कर मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े।
कौन कहता है कि खुदा और भगवान अलग हैं। सिर्फ भाषा का तो अंतर है। हम खुदा और अल्लाह कहते हैं। हिन्दू भाई भगवान और ईश्वर कहते हैं। ईसाई गॉड कहते हैं।
हम स्टेशन पहुँच चुके थे। उन नौजवान लड़कों ने हमें सम्मान के साथ गाड़ी से उतारा। हमारा परिवार उनका आभारी था और हमारे मन में एक संतोष था कि हमारे देश हिंदुस्तान को कोई नापाक ताकत धर्म, जाति और भाषा के नाम पर तोड़ नहीं सकती।