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"office से घर वापसी आते हुए ,तेज बारिश सुबह से चल रही थी रूकने का नाम नही जगह जगह पानी भरा था मे अपनी कार से घर वापस आ रहा था कि घर 2 km पहले अचानक बंद पड़ गई बहुत कोशिश पर भी स्टार्ट नही हो रही थी बडी अजीब सी मुसीबत हो गई तभी एक रिकशेवाला आता नजर आया मैने हाथ दिया पहले तो मना कर दिया शायद दिनभर का थका घर जा रहा था मगर अचानक वापस आकर बोला चलिए बारिश मे भीगते घर पहुंचे तो मै भागकर अंदर गया अपने लिए और उसके लिए तौलिया लेकर आया उसे दिया और कुछ देर बैठने को कुर्सी दी तभी पत्नी चाय बनाकर ले आई मैने उसे चाय दी और फिर50रू निकालकर दिए वो बोला-20रु खुले दीजिए बाबूजी, मै -अरे रख लो ,वो -नही बाबूजी यहां तक 20होते है बस 20रू दीजिए, मै-अजीब हो इतनी बारिश मे लेकर आये हो रख लो(मेरे अंहकार मे बोला),वो -नही बाबूजी बस 20रू ,मै -यार बडी अजीब बात है तुम्हें ज्यादा मिल रहे तो भी मना कर रहे हो ,वो -बाबूजी मेरे पिता कहते है किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाते भले खुद ठग जाना पर किसी को नही ठगना ओर साहब कया बारिश हम तो गर्मी सर्दी कुछ भी हो सबको घर ओर उनकी पसंद की जगह लेकर जाते है ये हमारा धर्म और यही इंसानियत हे ,मै -बडी अजीब आदमी हो यार, वो-अजीब तो आप हो बाबूजी कौन हम जैसे शिकशेवालो को घरपर कुर्सी देकर तौलिया देकर सिर पोछने को देता है ऊपर से इज्जत सम्मान से बिठाकर चाय ओर पिलाता है ,मै -भाई ये तो हर इंसान का फर्ज है यही तो इंसानियत है मेरे बार बार कहने पर भी उस रिकशेवाले ने 20रु से ऊपर नही लिए... उसदिन समझ मे आया आज भी समाज मे ईमानदार ओर मेहनती ओर अपने माता पिता का कहा मानने वाले मौजूद है सच पूछिए तो यही है इंसानियत....