संजीव जैन's Album: Wall Photos

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अमीर कौन ????.....

पुरानी साड़ियों के बदले बर्तनों के लिए मोल भाव करती सम्पन्न घर की महिलाने अंततः दो साड़ियों के बदले एक टब पसंद किया।

"नही दीदी, बदले में तीन साड़ियों से कम तो नही लूँगा।" बर्तन वाले ने टब को वापस अपने हाथ में लेते हुए कहा।

"अरे भैया, एक एक बार की पहनी हुई तो हैं..बिल्कुल नये जैसी। एक टब के बदले में तो ये दो भी ज्यादा हैं, मैं तो फिर भी दे रही हूँ।

""नही नही, तीन से कम में तो नही हो पायेगा।" वह फिर बोला।एक दूसरे को अपनी पसंद के सौदे पर मनाने की इस प्रक्रिया के दौरान गृह स्वामिनी को घर के खुले दरवाजे पर देखकर सहसा गली से गुजरती अर्द्धविक्षिप्तमहिला ने वहाँ आकर खाना माँगा।

आदतन हिकारत से उठी महिला की नजरें उस महिला के कपड़ो पर गयी। अलग अलग कतरनों को गाँठ बाँध कर बनायी गयी उसकी साड़ी उसके युवा शरीर को ढँकने का असफल प्रयास कर रही थी।

एकबारगी उसने मुँह बिचकाया पर सुबह सुबह का याचक है सोचकर अंदर से रात की बची रोटियां मंगवायी।उसे रोटी देकर पलटते हुए उसने बर्तन वाले से कहा "तो भैय्या क्या सोचा ? दो साड़ियों में दे रहे हो या मैं वापस रख लूँ !

"बर्तन वाले ने उसे इस बार चुपचाप टब पकड़ाया और अपना गठ्ठर बाँध कर बाहर निकला। अपनी जीत पर मुस्कुराती हुई महिला दरवाजा बंद करने को उठी तो सामने नजर गयी।
वह सुनने और देखने लगी।

बर्तन वाला अपना गठ्ठर खोलकर उसकी दी हुई साड़ियों में से एक साड़ी उस महिला को दे रहा था।
कह रहा था:-" ले ले ना बहन"
पागल औरत "क्यों लूँ जब मैं तुम्हे जानती नही".
बर्तन वाला" बहिन बोला है। रिस्ता तो हो गया। अब ले ले। तुमने जो साड़ी पहन रखी है उससे तुम्हारा शरीर जगह जगह से दिख रहा है। ये तो गन्दी बात हुई न।"
पागल औरत ने गौर करके खुद को देखा फिर झटके से उठी और उसकी दी हुई साड़ी लेकर भाग गई।
बर्तन वाला मुस्कराता हुआ चला गया। और वह दरवाजे पर खड़ी उसे दूर तक देखती रही। हाथ में पकड़ा टब अब कुछ भारी होकर चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था।