संजीव जैन's Album: Wall Photos

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#संतोषी
चुनाव आते ही गली-गली
की खाक छानते हो,
सत्ता मिलते ही तुम गरीबों
को कहां पहचानते हो?

संतोषी तो बस भात मांग
रही थी आपकी सत्ता नहीं,
कमाल है साहब जिसने तुम्हें आधार
दिया उन्हीं से आधार मांगते हो ।

चार चार दिन तक किसी के
घर का चूल्हा नहीं जलता है,
तुम काजू की रोटी खाने वाले लोग
कहां किसी की तकलीफ जानते हो?

मंदिर मस्जिद ताजमहल
पर बहस चलती रहती है,
तुम तो भगवान् को भी
अपना गुलाम मानते हो ।

नफरत की आग जलाकर
सेंकते रहो अपनी रोटियां,
अमर सपूतों का भी तुम
कहां पैगाम मानते हो?

पेट की आग में जलकर रोज
मरती रहती हैं यहां संतोषियां,
फिर भी तुम संसार में सबसे
ऊंचा अपना नाम मांगते हो।
अन्नपूर्णा यादव ''अनु''