ॐ ईश्वर
बड़े
ही अच्छा प्रशन है ,
आप ने जो प्रशन उठाया है ,यह उठने चाहिए
आध्यत्म ,राजनीती यह सदियो से ही आपस मिले हुए है, और यह आज भी जारी है , मैं एक बात पहले भी कहता आया हु सत्ता दो प्रकार की होती है, एक राजनेतिक सत्ता ,दूसरी धार्मिक सत्ता , यह दोनी आपस में मिली हुई है , आप गुरमीत का ही प्रकरण देख लीजिये उसे कितने साल बचाया गया
जो उस पे इल्जाम था ,उस की तो जमानत ही नही हो सकती थी ,वो 15 साल खुला घूमता रहा और
उसे हाई कोट ने जेल भेजा राजनेता तो उसको बचाते ही रहे अंत तक
राज नेताओ को बाबाओ जरूरत होती है ,चुनाव जीतने के लिए ,और बाबाओ को अपने अनेतिक कामो को छुपाने के लिए इनकी जरूरत होती है , यह पखंडी व् नेताओ की युगल बन्दी है ,जो देश को मुर्ख बना के लूटती है , जनता सब जानते हुए भी बेवकूफ बनती चली जाती है ।
अब बात करते है ,अध्यात्म की यह किताबो में नही मिलता उस को अपने अंदर ही तलाशना पड़ता है , धार्मिक ग्रन्थ कही - कही साथ देते तो है
पर ग्रन्थो का बेजा इस्तेमाल भी बहुत जाएदा होता है , जैसे बात तो ठीक ही कही गई होती है , पर अधर्मी बाबे उसका अर्थ कुछ अलग ही बताते वो जो भी अर्थ निकाले गे वो उनके अपने ही अनुकूल होगा , उनका एक ही मकसद होता है ,किसी तरहा खुद को भगवान साबित करे और मासूम लोगो को लूटते रहे
अपनी धार्मिक सत्ता चलाते रहे ,
पुराने समय में बहुत अच्छे सन्त भी हुए है ,
सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है , की राजा ,महाराज की ही बाते क्यों की गई हमारे ग्रन्थो में तो इसका
जवाब सीदा ही है ,जिसके पास ताकत , सत्ता, धन था उसने अपनी ही महिमा गवाई और लिखवाई ।
इसे आज हम इस तरहा से देख जैसे राजनेता की बात चलती है ,न्यूज में ,अख़बार, में सभी जगहा और इतिहास भी इनी का लिखा जायेगा हमारा नही
जो पहले था , आज भी वही है , लिबास बदले होंगे
भाषा बदली होगी , पर आचरण व्ही है , पहले जैसा
ॐ ईश्वर ॐ ईश्वर ॐ ईश्वर