ये पाठ सबके लिए ही है ना!
या फिर कुछ लोगों के ही लिए है?
कब तक भ्रम में पड़े रहोगें?
अचरज इस बात का होता है कि ऐ पाठ हमको पढ़ाने वाले हमारे अपने ही भाई होते हैं।
काश! कभी कोशिश की जाती जो इस पाठ को पढ़कर भी नहीं मानते उनके लिए दूसरे पाठ का इंतजाम किया जाता।
मुझे शिकायत है इस तरह के विचारों से!