अब नए बच्चों में गुल्लक का क्रेज़ नही है। पर हमारी पीढ़ी में तो था । अकेली गुल्लक ही नहीं मरी है साथ ही एक पैसे से लेकर पचास के सिक्के तक को आत्महत्या करनी पड़ी है। गुल्लक की बचत में एक भारतीय संस्कार था कि पहले अपने फालतू के दैनिक खर्चो पर अंकुश करो यानि अपनी इच्छाओं का दमन और फिर बेहतर भविष्य के लिए संयोजन कर लो। आज हमारे बच्चे प्लास्टिक मनी और आज कर्ज लेकर सभी विलासी सामान खरीद लो फिर अपने दैनन्दिन खर्चो का रोना रोकर जिम्मेदारियों से आँखे फेर लो की नीति पर है। गुल्लक की बचत के संस्कार ने बारम्बार आई मन्दी के दौर में भी भारत को मरने नही दिया जबकि दुनिया के कई बैंक फेल हो गए थे। हर अमेरिका जेसे देशो में युवाओ को नोकरियों से हाथ धोकर आत्महत्या करनी पड़ी थी। वही भारत के बचत के संस्कारो ने हमे मजबूती से थामे रखा। आज आवशयकता है कि हम इस गुल्लक को थामे और इसके पेट में डालने के लिए सिक्के को भी थामे।