संजीव जैन's Album: Wall Photos

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जावेद तुम्हारा दोष नहीं, मक्कारी वाले वाद हो तुम।
जो प्यार तलाकों तक जाए, गीतों के वो संवाद हो तुम।।

कहते हो पीठ दिखी तो क्या,बुर्कों में ढके आबरू को।
खुद बदबू से हो भरे हुए, बदनाम कर रहे खुश्बू को।

तुम्हें हिन्दू गुंडे लगते हैं, जो नाक पे नाक मंगाते हैं।
वादों से पलटा भुंसाली, गरदन कह उसे डराते हैं।

तुम्हें दर्द दिखाई ना देता, बुर्कों में तीन तलाकों में।
क्युं फिल्म बनाई ना तुमने,बापों को भेज शलाखों में।

बच्चों की घर घर लाइन है,कभी सीख नहीं दी मजहब को?
जिनके रहमों हो भारत में, लानत देते उस मजहब को?

जरा बोलो अपने मजहब को, महिलाएं बुर्का बंद करें।
बस एक निकाह सभी का हो,वे तीन तलाक को बंद करें।

फतवा ढेरों आ जाएंगे, गरदन की कीमत जानोगे।
मजहब तुम्हें तो धर्म हमें,क्युं कितना प्यारा जानोगे।

सोचा था मानव गुण होंगे, मजहबी रंग बर्बाद हो तुम।
जो प्यार तलाकों तक जाए, गीतों के वो संवाद हो तुम।।

वंदेमातरम...
भारतमाता की जय...
जयहिन्द...

भास्कर मिश्र "अमोल"