"ये मजबूरी में, लाइट ढोतीं लाचार, महीलायें
ये जिंदगी की जद्दो जहद में, पिसती गरीबी
क्या विकास की बड़ी बातें, छू पाएंगी कभी
इन सब को, जब ये देख रहीं बस, कि उन्हें
मिल जाएँ, कुछ रहने- खाने भर को ही रोटी।
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कहीं ऐसा न हो, अमीरों लिए ही बनाते बनाते
मिट जाए, इन गरीबों की- दुनिया और हस्ती
तुम सजाते ही रह जाओ, शहर - हवाई अड्डे
और भूल जाओ उन्हें, जिनसे है तुम्हारी हस्ती"
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