संजीव जैन's Album: Wall Photos

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हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥

बस बहुत अब हो चुकी है शांति की चर्चा यहाँ पर
हो चुकी अति ही अहिंसा सत्य की चर्चा यहाँ पर;
ये मधुर सिद्धान्त रक्षा देश की पर कर ना पाए
ऐतिहासिक सत्य है यह सत्य अब पहचानना है॥

हम चले थे विश्व भर को प्रेम का संदेश देने
किंतु जिन को बंधु समझा आ गया वह प्राण लेने;
शक्ति की हम ने उपेक्षा की इसीका दंड पाया
यह प्रकृति का ही नियम है अब हमे यह जानना है॥

जग नही सुनता कभी दुर्बल जनों का शान्ति प्रवचन
सिर झुकाता है उसे जो कर सके रिपु मान मर्दन;
हृदय मे हो प्रेम लेकिन शक्ति भी कर मे प्रबल हो
यह सफलता मन्त्र है करना इसी की साधना है॥

यह न भूलो इस जगत मे सब नही है संत मानव
व्यक्ति भी है राष्ट्र भी है जो प्रकृति के घोर दानव;
दुष्ट दानव दमनकारी शक्ति का संचय करे हम
आज पीड़ित मातृभू की बस यही आराधना है॥......

राम मंदिर और विवादित ढांचे को ढहा दिए जाने की घटना को एक युग बीत गया है। वक्त ने उस समय धधके ज्वालामुखी के मुख पर राख अवश्य डाल दी है लेकिन यह ज्वालामुखी अभी शांत नहीं हुआ है। हजारों वर्षों से जिस राजा राम चंद्र की जन्मभूमि हेतु हर भारतीय उद्वेलित हो, हर हिन्दू जिस रामलला की अखण्ड पूजा-अर्चना का भाव लेकर सदियों से जाता रहा हो; उस जन्मभूमि- भारतभूमि को खण्डहर बनाये रखकर राजनीति करने वालों की मंशा क्या है?

दुर्भाग्य से आजतक कुछ व्यक्तिवादी दलों की जातिवादी और अल्पसंख्यकों के प्रति की सोच चुनाव और दल की राजनीति से इस कदर तुष्टीकरण की विचारधारा नहीं बदली है। मसलन, मुलायम सिंह यादव उस वक्त की घटना पर आज भी सीना ठोक कर गोली चलवाने के लिए गर्व महसूस कर रहे हैं। लालू यादव का भी वही हाल है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते वहां के राजकीय त्यौहार दुर्गापूजा की महत्ता को भी कम कर दिया है। जबकि वक्त के थपेड़े खाकर हाशिये पर पहुंच गई देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को अब खुद को हिंदू साबित करना पड़ रहा है। ढांचा ढहाने की घटना के बाद बेहतर दिशा में चलती प्रदेश सरकार की बलि के बाद भाजपा ने उस समय रक्षात्मक रुख अख्तियार किया था, जबकि कांग्रेस आक्रामक हो गई थी। तब से अब तक राम भले ही कानूनी अखाड़ों मे फंसे हों, लेकिन राजनीति और समाज में उतार-चढ़ाव के साथ बहुत बड़ा बदलाव दृढ़ता के साथ खड़ा हो गया है। एक सम्पूर्ण तरुणाई समक्ष खड़ी होकर हमारे राजनीतिक नेताओं और सम्पूर्ण न्यायप्रणाली से प्रश्न पूछ रही है कि आज तक यह सुनवाई लायक स्थिति में क्यों नहीं है; इसका हल अब तक क्यों नहीं निकला? वह तरुणाई जो जाति-धर्म से परे हटकर आज इतिहास और श्रद्धा पर सवाल उठाने से नहीं हिचकती; वह पीढ़ी जो अपने अधिकार को बखूबी समझती है और मुखर होकर बदलाव के लिए संघर्ष करती है, उसे इस बात का उत्तर चाहिए कि जब 25 वर्ष ढाँचा ध्वस्त हो जाने के बाद अभी तक एक राष्ट्रीय मुद्दे पर गवाही और सम्पूर्ण दस्तावेज़ नहीं तैयार नहीं हो सके तो सामान्य व्यक्ति को समयबद्ध न्याय की आशा कैसे हो सकेगी।

छह दिसंबर, 1992 का दिन कोई भूल नहीं सकता । जैसे आंधी आई और सब कुछ बहाकर ले गई। वही वक्त था, जब परिपक्वता की आवश्यकता थी और वही वक्त था, जब नेतृत्व को राजनीति से परे उठकर सोचना चाहिए था। पर अफसोस कि कई दिग्गज तुष्टीकरण की राजनीति से नहीं उबर पाए; खासतौर पर क्षेत्रीय दल। मुलायम सिंह समेत कई नेताओं ने इसकी तुलना आतंक और आतंकियों तक से कर दी। देश की सबसे पुरानी पार्टी का दम भरने वाली कांग्रेस इस पूरे मुद्दे से अपना दामन बचाने की कोशिश में जुटी रही। उसके बाद इतिहास में क्या कुछ हुआ, यह याद दिलाने की जरूरत नहीं। राजनीति में किस तरह उथल पुथल आया, यह बताने की भी जरूरत नहीं है। शायद कांग्रेस यह भूल गई कि दस साल के अपने शासनकाल में उसने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र देकर श्री राम के अस्तित्व पर ही प्रश्न किया था; अब वह मन्दिर जाकर और तिलक लगाकर खुद को राम और शिव का भक्त बताते फिर रही है। पर भूल तब होगी, जब हम यह मान बैठेंगे कि वक्त के साथ ज्वार खत्म हो गया और श्री राम जी के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालकर आगे बढ़ा जा सकता है। समय की मांग है कि इस मुद्दे का समयबद्ध निपटारा हो, जिसके लिए कोर्ट भी आगे आया है। जरूरत है ऐसी कोशिशों को नैतिक समर्थन देने की। इस मुद्दे पर हो रही सारी राजनीति को दरकिनार करते हुए सुप्रीम कोर्ट को कानून सम्मत फैसला करना ही चाहिए, ताकि सात दशक से जारी विवाद का अंत हो सके। समय की मांग है कि अयोध्या मामले का हमेशा के लिए निपटारा कर दिया जाए तथा ऐसे कुछ राजनीतिक दलों की नीयत का जवाब दिया जाये जो विवादित ढाँचे को विवादित ही रखकर वैमनस्यता की अंगीठी पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकना चाहते है।