संजीव जैन's Album: Wall Photos

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----- अपनी साईकिल -----
“भईया एक चक्कर मुझे भी चलाने दो ना, भईया एक चक्कर मुझे भी” कहते कहते वो साईकिल के पीछे दौड़े जा रही थी। अचानक उसे ठोकर लगी और गिर गई। वो रोते रोते घर पहुंची।
“माँ भईया ने मुझे गिरा दिया”
“अरे उसने कहाँ गिराया, तू ही तो उसकी साईकिल के पीछे दौड़ रही थी, चल यह चाय के प्याले मांज दे, मै अभी बाजार से सब्जी लेकर आती हूँ।”
वो सुबकते सुबकते प्याले धो कर रख रही थी कि उसे साईकिल की घंटी सुनाई दी। उसने दरवाजे की तरफ देखा तो उसकी माँ एक नई साईकिल लिए खड़ी थी। वो जाकर माँ से लिपट गई।
माँ अपनी गुड़िया को साईकिल देते हुए बोली “एक दिन मै भी अपने भाई की साईकिल के पीछे दौड़ते हुए गिरी गई थी।”
“फिर आपकी माँ ने आपको साईकिल दिलवाई क्या?”
“नही वो पैसो की तंगी की वजह से नही दिलवा पाई और मै प्याले धोते ही रह गई।”
गुड़िया तेज पैडल से साईकिल चला रही थी और माँ कोे लग रहा था जैसे उसके भीतर बंद एक छोटी गुड़िया को आज अपनी साईकिल मिल गई हो।
----- हेमंत राणा