संजीव जैन's Album: Wall Photos

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*सिर्फ जागरुक पेरेंट्स के लिए*

कब तक रहेंगे खामोश यूं ही
इन बिगड़े हालातों को बदलना होगा
बेखौफ हो रहे अनियंत्रित स्कूलों के खिलाफ अब तो जहर उगलना होगा

बड़े-बड़े सीबीएसई और आईसीएसई अप्रूव्ड स्कूलों को अपना स्टेटस सिंबल बना चुके माता पिताओं के लिए निश्चित ही आज की यह बस दुर्घटना झकझोर देने वाली है , अपने घरों से 15 20 किलोमीटर दूर बने बड़े विशालकाय...... स्टेटस देने वाले ..... इन स्कूलों में अपने फूल से कोमल बच्चों को घंटो तक बस में बैठकर स्कूल तक जाने और आने की यातना देने वाले माता पिताओं को फिर एक बार सोचना होगा

वर्तमान में इंदौर में कई सारे बड़े नामी Trust और संस्थानों की के स्कूलों की फीस 50,000 से 1,00,000 रुपए के बीच हैं जिन्हें शासन द्वारा चंद रुपयों की लीज पर सामाजिक कल्याण के नाम पर जमीन मुहैया कराई गई है क्या यह स्कूल लाखों रुपयों की फीस लूटकर वाकई में जनकल्याण कर रहे हैं

अगर लाखों रुपया खर्चा करा कर के भी अगर हमारे बच्चे आईआईटी और एम्स की परीक्षाएं सिर्फ इन स्कूल की शिक्षा के आधार पर अगर क्लियर नहीं कर सकते तो इन महंगे स्कूलों का औचित्य क्या

कहीं हम बच्चों की शिक्षा को अपना स्टेटस सिंबल तो नहीं बना चुके हैं

ठंड, गर्मी और बरसात में आधी से 1 घंटे तक अपने घर से दूर कई किलोमीटर तक बस की यात्रा करने वाले बच्चे कहीं आप की प्रताड़ना का शिकार तो नहीं..

अपनी कड़ी मेहनत की कमाई में से हर हर साल एक लाख से ₹2 लाख के बीच खर्चा करके क्या हम अपने बच्चों को वास्तविक शिक्षा दे पा रहे हैं...

स्टेटस सिंबल का पर्याय बन चुके अधिकांश स्कूलों में 8th 9th तक पढ़ाने के बाद अधिकांश माता पिताओं को जब बड़ी-बड़ी कोचिंग क्लास में भेज कर ही आईआईटी और मेडिकल की तैयारी करानी होती है तो फिर यह दिखावा क्यों

सीबीएसई के नियमों के अनुसार एनसीईआरटी की किताबों से पढ़ाई होना चाहिए परंतु अधिकांश स्कूलों ने अपने प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें जारी कर रखी है जो NCERT से कहीं गुना महंगी है और कहीं अधिक Tuff भी इस तरह का पब्लिकेशन चलाने की मंजूरी प्रशासन ने कब दी और क्यों दी और अगर नहीं दी तो प्रशासन इन स्कूलों पर अपनी मनमर्जी से पढ़ाने के खिलाफ कदम क्यों नहीं उठाता

स्कूलों की भारी-भरकम फीस के बोझ के तले दबे हुए हिंदू समाज का एक बड़ा तबका अपने दूसरे बच्चा करने के पहले 10 बार यही सोचता है कि खाने पीने का खर्चा तो वह कभी भी उठा सकता है परंतु क्या वह अपने बच्चे को इन महंगे स्कूलों में शिक्षा दिला पाएगा और शायद यही कारण है कि आज मध्यम वर्गीय और उच्च मध्यम वर्गीय परिवारों मैं कई पैरेंट से ही बोलते हैं कि
"शेर का बच्चा एक ही अच्छा"
जब की सच्चाई शिक्षा के इस बड़े खर्चे के बोझ के तले दबे होना है

साथियों जरूरी है इस सवाल पर प्रदेश के शासन और प्रशासन को जगाया जाए
आओ मिलकर इनके खिलाफ लड़े ....एक नया बीड़ा उठाया जाए.....

यह लड़ाई सिर्फ Facebook और WhatsApp पर ना लड़े

आइए मिलकर एकजुट हो

और अनियंत्रित हो चुके शैक्षणिक संस्थाओं के खिलाफ मिलकर लड़े.....।
कब तक हम सोते रहेंगे अब जाग जाओ और कदम आगे करो इन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ इनबुक आपके साथ कदमोंकदम चलने के लिए तैयार है।
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