क्रान्ति का पथिक खेलता है अग्निवीथियों में,
नेता क्रान्तिवीर का बयान करता हूँ मैं।
खून दोगे तो आज़ादी दिलवाऊँगा मैं,
लोकनायक नेता जी का ध्यान करता हूँ मैं। .... राजेन्द्र राजे
आज़ादी के आन्दोलन में अहिंसात्मक तथा सशस्त्र आन्दोलनों के अपने-अपने अलग महत्व हैं; यह कहना भारी भूल होगी कि केवल अहिंसात्मक आन्दोलन से ही भारत आज़ाद हुआ। देश की आज़ादी में अहिंसात्मक आन्दोलन से सशस्त्र आन्दोलन की भूमिका कुछ भी कम नहीं। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के वृक्ष को गिराने के लिए उसे कुल्हाड़े से काटने व रस्सियों से खींचने को हम क्रमशः सशस्त्र अभियान व अहिंसात्मक आन्दोलन की संज्ञा दे सकते हैं। उस वक्त नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने आज़ाद हिन्द फ़ौज नाम के भीषड़ तेज धार वाले कुल्हाड़े से प्रचण्ड प्रहार कर पराधीनता के वृक्ष को धराशायी कर दिया।
देश के युवाओं को दिग्भ्रमित करने का प्रयास अभी भी जारी है। उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम हर ओर आतंकवाद, सम्प्रदायवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, संकीर्ण विघटनकारी शक्तियाँ देश को खोखला करने में प्रयासरत हैं। राष्ट्रीय आन्दोलन से लेकर राष्ट्र निर्माण तक सामाजिक एवं सांस्कृतिक आन्दोलन द्वारा नए भारत का स्वप्न साकार करने की यात्रा में हमारा कर्तव्य बनता है कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जी 121 जयन्ती पर उन्हें और सभी देशभक्तों और शहीदों का मनसा वाचा कर्मणा सहृदय कृतज्ञता का आभार प्रकट करें जिनके अहर्निश त्याग, तपस्या और बलिदान के द्वारा भारत माँ की पग अर्गलाओं को छिन्न-भिन्न करने में अपने प्राणों की आहुतियां दी हैं और दे रहे हैं।
"राष्ट्रवीरों को नमन है,
देशभक्तों तक गमन है।
समर की वेदी बड़ी है,
मृत्यु से आंखे लड़ी हैं।
आहुति तो प्राण की है,
वेदी अग्नि वाण की है।
क्रान्ति की संकल्पना है,
राष्ट्र की स्पन्दना है।"