एक टी.आई. सब पे भारी
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खाकी वर्दी में छुपा हुआ एक इंसान मुस्लिम बाहुल्य इलाक़े में अमन अमान के लिये सरकार की तरफ सर तैनात है जिसके कांधे पर अपराधीयो पर नकेल लगाना है पर वो उस फर्ज को पूरा करते करते एक मासूम बच्ची की फीस का इंतेज़ाम करता है जो धर्म कर्म से ऊपर उठकर काम करता है में ऐसे इंसान को सलाम करता हु ओर मूझे खुद पे शर्म आती है कि मेंरे इलाके में कहा गये वो माल वाले वो तंजीम वाले जो कहते है आधी रोटी खाएंगे बच्चो को पढ़ाएंगे कहा गए वो बड़े बड़े मदरसे जो बेसकीमती जगह पर कब्जा कर के मोटी रकम ले कर स्कूल चला रहे है कहा गये वो बैतुलमाल वाले जो गली गली में टेंट लगा कर जकात वसूलते है कहा गये वो ईद पर खाल इकट्ठी करने वाले कहा गये वो जो दिन रात इस्लाम पर बात करते है और कहते है कि हमारे नबी ने फरमाया की तालीम की लीये चीन जाना पड़े तो जाना कहा गये वो सियासतदा जो चुनाव में लाखों खर्च करते है कहा गये वो गुरूप जो बड़ी बडी होटलों में पार्टी करते है कहा गए वो बहरूपिया जो यतीमो पे तकरीर करते है आखिर कहा गए सब ।
याद रखो उस इंसान ने सिर्फ एक बच्ची की फीस नही भरी बल्कि एक नस्ल को तालीम की तरफ भेजा है और ये हमको ये एहसास करवाया है कि दुनिया को कोसने से बेहतर की हम खुद अपनी नस्लो की फिक्र करे और में टी.आई साहब को शुक्रिया कहता हूं कि उन्होंने समाज को आईंना दिखाया ।