संजीव जैन's Album: Wall Photos

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झुंझुनू शहर और उसके आसपास के दुसरे शहरों तक शायद ही कोई आदमी हो डॉ.जैन के नाम से परिचित न हो। पिछले पचास साल से अनवरत काम करते आज तक इनकी फीस मात्र दस (10/-) तक पहुंची है। कुछ वर्ष पूर्व तक पहली बार वाले को दस और वही मरीज़ दुबारा आने पर पाँच रु. लेते थे। सबसे ज्यादा सस्ती और असरकारक प्रेस्क्रिप्शन लिखते हैं। कोई दवा कम्पनी इनको घूस नहीं दे सकती। नाम और मीडिया यश के लोभ से दूर।
इन्हें लोग भगवन के बराबर समझते हैं, हर आम आदमी के दिल इनके प्रति अगाध समान है और दुसरे डाक्टर इन्हें .... बताने की जरुरत नहीं हैं क्या समझते होंगे (दस रूपये में सबसे असरदार इलाज़ देने वाला अगर कोई मिले तो कोई हज़ार पाँच सौ के पास क्यों जायेगा) । पर भीड़ होने से से नम्बर आने में समय लग जाता है। बस बाकी के स्थानीय फिजिशियन की वही ग्राहक हैं जिनके पास समय नहीं।
आज अस्सी के पास आने की उम्र में भी इनका एक ही रूटीन सुबह आठ से शाम सात बजे तक मरीज़ देखना। बीच में दो घंटे का लंच। इस रूटीन में पिछले कई दशकों से एक मिनट का भी फर्क नहीं आया है (ध्यान दें 'एक मिनट' का भी नहीं)। मीडिया से दूर, लायन्स क्लब के जरिये चेरिटी करने वाले, अकेले रहने वाले, कम बात करने वाले आदमी। समय और नियम के अत्यधिक पक्के हैं। इनके क्लिनिक में मरीजों को टोकन दिया जाता है नम्बर आने पर मरीज़ के अनुपस्थित होने पर उसे सबसे अंत में ही देखा जाता है। समय की क़द्र न करने वाले और घूस खाकर काम करने वाले नर्सेस को इन्होंने तुरन्त प्रभाव से अपने अस्पताल से निकाल दिया। शुरुआत में सरकारी थे, पर नम्बर से देखना इनका नियम था, एक दिन सरकारी अस्पताल में पधारे स्थानीय विधायक जी को इन्होंने बिना पंक्ति में आये, पहले देखने से इनकार कर दिया। सरकारी छोडनी पड़ गयी। इन्होंने अपना निजी क्लिनिक खोलकर जनसेवा शुरू कर दी जो शायद इनकी अंतिम सांस तक जारी रहेगी। कुल मिलाकर यही कह सकते ये इस दुनिया के आदमी नहीं है।