क समय की बात है पंजाब के एक खुशहाल सूबे में छोटा सा गाँव था-टुन्नपुर। उसका जमीदार काफी सम्पन्न था। बड़ी हवेली, खेत-खलिहान और गाय-भैंसों की कोई कमी नहीं थी। उसे अपना समय को बिताने के लिए रोज़ शाम को मित्रों के साथ बैठकर शराब पीने की लत लग गयी। समय के साथ-साथ शराब की मात्रा बढ़ती ही गयी। उसकी इस लत से जमीदार की पत्नी बहुत चिंतित रहती थी।
एक बार टुन्नपुर में एक साधु घूमते-घूमते पहुँचे और कुछ देर गाँव में विश्राम करने के लिए रूक गये। उसी समय जमीदार की पत्नी वहां से गुज़र रही थी। उसकी नज़र साधु पर पडी। उसने साधु महाराज के पांव छू-कर आर्शीवाद लिया और आदर-सत्कार किया।
साधु जमीदार की पत्नी के आतिथ्य से बहुत प्रभावित हुए।
‘सदा सुखी रहो।’-साधु महाराज ने आर्शीवाद दिया।
महाराज का इतना क्या कहना था कि जमीदार की पत्नी की आंखे डबडबा उठी। बार-बार पूछने पर उसने बताया कि पति के शराब की लत के कारण पूरा परिवार बरबाद होने की कगार की तरफ बढ़ रहा है तथा क्षेत्र में अशान्ति होने लगी है।
साधु महाराज ने गंभीर मुद्रा में कहा कि उसे वह अपनी हवेली में आमंत्रित करे।
‘वे तो प्रवचन सुनने को राजी ही नहीं होते। अच्छी बातें तो वह सुनना नहीं चाहते तथा उनको तो सिर्फ अपने जैसे शराबियों की महफिल ही पसंद है।’-जमीदार की पत्नी ने निराशा भरे स्वर में कहा।
‘पुत्री बस इतनी सी बात है, मत चिन्तित हो।’ साधु महाराज ने आगे कहा-
‘तुम अपने पति से यह कहो कि एक ऐसा साधु आया है जो शराब पीने के अनेक लाभ बताता है तथा शराब से परमधाम प्राप्त होने का सुगम रास्ता भी दिखाता है।’
जमीदार की पत्नी ने साधु की बात मानकर अपने पति के समक्ष यह सब बात कहीं।
पत्नी की बात सुनकर जमीदार की साधु से मिलने की उत्सुकता एकदम बढ़ गयी।
साधु को हवेली में कुछ दिन बिताने का निमन्त्रण दिया गया।
अगले दिन साधु जमीदार की हवेली पहुँच गये। गाँव में मुनादी करवा दी गयी कि शाम को महात्मा जी शराब के गुणों का बखान करेंगे तथा इसके पीने से परमात्मा प्राप्ति का सुगम रास्ता भी सुझायेंगे।
दिन ढला और शाम हुई। गाँव का पूरा हुजूम हवेली में जुटने लगा। आगे की पंक्ति में सारे शराबी बोतल और गिलास के साथ बैठ गये। आज उन सबको अपने घर की रोज शराब के कारण होने वाली चिकर-चिकर को जो बंद करनी था। इसलिए महिलाओं को भी साथ लाया गया जिससे कि वे भी शराब के गुणों को समझने के बाद पतियों को टोकना बंद करें तथा उनका सहयोग करें।
तय समय पर साधु महाराज ने प्रवचन प्रारम्भ किया।
‘शराब पीने वाला व्यक्ति कभी बूढ़ा नहीं होता। शराब की शक्ति के कारण पीने वाले व्यक्ति के घर में चोर कभी प्रवेश नहीं करते। शराबी व्यक्ति सब प्रणियों में सिर्फ प्रभु का ही वास देखता है अर्थात वह अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, छोटा-बड़ा सबको समभाव ने देखता है। सब रूपों को आत्मसात कर लेता है। ऐसी है शराब की महिमा।’
‘पर पुत्रों परम कल्याण के मार्ग में एक बाधा है?’
क्या महात्मा जी!!! एक स्वर में सभी शराबी बोल पड़े।
‘गुरू के बिना गोविन्द की प्राप्ती नहीं हो सकती। अतः तुम्हें किसी न किसी को अपना गुरू बनाना होगा जो तुम्हें परमधाम जाने वाले सुगम रास्ते पर ले जा सके।’
‘महात्मा जी आप गुरू बनकर हमे कृतार्थ करें।’-जमीदार ने प्रार्थना की।
यह प्रस्ताव तुरन्त स्वीकार कर लिया गया।
‘मैं तुम्हे एक सिद्ध किया हुआ गिलास देता हूँ। हमेशा इसी से ही मद्धपान करना।’
‘यह हिमालय पर्वत से लाये हुए मनके हैं।’ महात्मा ने मुट्ठी भर मनके झोली से निकाले।
‘आज के बाद जब भी तुम शराब पियो तो एक मनका रोज उस गिलास में डालते रहें। लेकिन ध्यान रखें डाले हुए मनके को गिलास से कदापि न निकालें। अन्यथा हानि होने की परम सम्भावना हो सकती है।’
‘इतिश्री। सभा समाप्त।’
जमीदार गुरूजी की आज्ञा का अक्षरतः पालन करने लगा। वह एक मनका प्रतिदिन गिलास में डालता। परिणामस्वरूप गिलास मे शराब की मात्रा दिन प्रतिदिन कम होने लगी। कुछ दिनों में गिलास मनकों से भर गया। तब तक जमीदार की पीने की लत भी छूट चुकी थी।
खून में शराब की मात्रा खत्म हुई तो उसका दिमाग खुला। उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा कि कितने दिनों तक शराब की लत के कारण वह अपने परिवार और सूबे की उन्नति के लिए कुछ भी नहीं कर पाया। उसने तत्काल अपनी गलती सुधारी और अपने कार्य में जुट गया।
उसके मन में हमेशा एक बात खटकती रहती कि गुरू जी ने चातुर्य से उसकी शराब तो छुड़ा दी परन्तु जल्दी ही परमार्थ की प्राप्त कैसे होगी यह समझ से परे था। इसी उधेड़बुन को सुलझाने के लिए वह गुरूजी के आश्रम चल पड़ा।
‘गुरूजी मुझ मूर्ख को यह समझायें कि किस प्रकार शराब पीने वाला व्यक्ति कभी बूढ़ा नहीं होता। उसके घर चोरी क्यों नहीं होती और उसमें सब जीवों को समभाव से देखने की दृष्टी कैसे आ जाती है?’
महात्मा जी ने हंसते हुए समझाया-
‘पुत्र! दिन-रात शराब पीने वाला व्यक्ति बूढ़ा इसलिए नहीं होता क्योंकि वह उस अवस्था तक पहुंच ही नहीं पाता। अर्थात उसकी मृत्यु बुढ़ापे से पहले ही हो जाती है।’
‘शराबी के घर बचता ही क्या है जो कि चोर वहां से चुरायेंगे।’
‘शराबी व्यक्ति को सभी एक समान दिखाई देते हैं। इसका आशय है कि अधिक पीने से सोचने-समझने की शक्ति तो समाप्त हो ही जाती है। वह भला-बुरा, अच्छा-खराब आदि कुछ समझ ही नहीं पता।’
गुरूजी के मुख से उत्तर पा कर जमीदार पूरी तरह संतुष्ट हो गया। वह पूरे जोश और लगन से अपने क्षेत्र की खुशहाली के लिए जुट गया। देखते-देखते उसका पूरा क्षेत्र शराबविहीन, उन्नत और खुशहाल बन गया।
मित्रों इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि किसी को भी दण्ड, भाषण, उपदेश आदि से नहीं बल्कि युक्ति से समझाना चाहिए। सोची-समझी उचित युक्ति से असंभव सा लगने वाला कार्य भी आसान हो जाता है।