ये हैं रमेश तिवारी। उम्र करीब 55 की होगी। इंदौर की सड़कों पे पिछले एक हफ्ते से घूम रहे हैं, एक तख्ती लटकाये। ड्राइवर थे 1982 से, लेकिन एक साल पहले सब छोड़ के घर बैठ गए। कारण इन्होने शहर से बाहर जाने पे अपने लिए होटल में एक कमरा माँगा। " मेरी शर्त थी की मुझे एक कमरा दिया जाय , ताकी मैं भी ठीक से सो सकूँ , तो मोटरमालिक ने निकाल दिया ," तिवारी जी बोले।
फिर तिवारी जी घर पे रहने लगे। बीवी -बच्चे हैं नहीं तो जमा पूँजी से काम चल जाता था। लेकिन कुछ दिन पहले इनके छोटे भाई को चोट लग गयी तो भाई के परिवार का बोझ इन्होने खुद पे ले लिया । तो तिवारी जी ने एक टीन का बोर्ड बनवाया और गले में टाँगे घूमते हैं सुबह से शाम तक !
लोग रोकते हैं फोटो खींचते हैं और ये आगे बढ़ जाते हैं चुपचाप ! कल दिन भर में इन्होंने 200 रुपये कमाए थे !
आज पता नहीं कहाँ होंगे। गजब के जीवट और आशावादी आदमी .....मैने कहाँ " काम मिलेगा दादा , अभी तो एक हफ्ते से घूमना शुरू किया है, " हँसते हुए चुपचाप कुछ सोचने लगे...और फिर निकल गए नौकरी कि तलाश मे...
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