सामाजिक समस्याएँ-----------
जातिवाद
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जाति भारतीय समाज की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। इसने भारतीय समाज और संस्कृति की रक्षा की है।विदेशी शासनकाल में विदेशियों के अनेक प्रयत्नों के बावजूद जाति व्यवस्था स्वयं तो नहीं बदली बल्कि विदेशियों को ही इसमें समाहित होना पड़ा।स्मृति युग और मध्य युग की कुरीतियों ने जाति व्यवस्था का स्वरूप कलुषित कर दिया।जिससे यह व्यवस्था असमानताजन्य विघटनकारी,यहाँ तक कि छुआछूत की भावना पैदा करने वाली बन गई।
ब्रिटिश भारत में ही इसके विरुद्ध आवाज उठायी गई अनेक विधानो और समाज सुधारकों के प्रयासों के कारण,विशेष तौर से आजादी के बाद किए जाने वाले प्रयत्नों से,जाति-पॉति का भेदभाव तथा असमानता और छुआछूत में कुछ कमी तो आयी लेकिन जाति के स्थान पर जातिवाद बढ़ गया।
जातिवाद के रूप में यह व्यवस्था विघटनकारी प्रवृत्तियों को तो बढ़ावा दे ही रही है साथ ही प्रजातंत्र के मार्ग में अनेक प्रकार के अवरोध उत्पन्न कर भारतीय समाज के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गई।
जातिवाद से ऊपर उठ कर समाज व राष्ट्र के लिए सोचें हम सब।
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