satish bhola vats's Album: Wall Photos

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. "बाँवरी गोपी का मनोरथ"

वृंदावन की गली में एक छोटा सा मगर साफ सुथरा, सजा संवरा घर है। एक गोपी माखन निकाल रही है और मन ही मन अभिलाषा करती है कि,: आज कन्हैया अपनी टोली के साथ उसके घर माखन चोरी करने पधारे तो कितना ही अच्छा हो। आज "कन्हैया" आये और मैं अपनी आँखों से कान्हा की वो माखन लीला निहार सकूँ।
उसके सांवरे सलोने मुखड़े पर लिपटा सफ़ेद माखन कितना मनोहर दिखाई देगा ? काश आज कान्हा मेरे घर आ जाये। ऐसा करती हूँ, आज माखन में थोड़ा केसर मिला देती हूँ, थोड़ा बादाम, इलायची और किशमिश, मिश्री भी मिलाती हूँ। कान्हा को कितना भायेगा न। माखन की सुवास और स्वाद उसे कितना अच्छा लगेगा। लो, अब तो माखन भी तैयार हो गया। अब ऐसा करती हूँ कि मटकी में थोड़ा शीतल जल डाल कर माखन का पात्र उसमें रख देती हूँ। इससे माखन पिघलेगा नहीं।
गोपी सोचती है कि कान्हा को कैसे बुलाऊँ ? कौन सी तरकीब लगाऊँ कि वो आ जाये, क्या करूँ ? और गोपी का विरह बढता जाता है। चलो गली में देखती हूँ, शायद कोई बात बन जाए।
तभी मनसुखा दिखाई देता है। अरे! यह मनसुखा कहाँ भागा जा रहा है ? जरूर कान्हा संग खेलने जा रहा होगा। इसे बुलाती हूँ। मनसुख!! ओ मनसुखा!! तनिक यहाँ तो आ। मेरा एक काम कर दे। तुझे माखन दूँगी आज मैंने बहुत अच्छा माखन निकाला है। तनिक आ तो।
मनसुखा के दिमाग में तुरंत नयी क्रीड़ा आई, दौड़ते दौड़ते बोला मुझे देर हो रही है, और वहाँ कान्हा खेलने के लिए इंतजार कर रहा होगा।
अब यह गोपांगना क्या करे ? कैसे बुलाये कान्हा को ? लेकिन आज इस गोपी का बाँवरा मन कह रहा है कि वो छलिया जरूर आएगा। यहाँ से छुप के उसकी लीला देखूँगी। बस अब आ जाये। आ जा न कान्हा... देख अब और सता मत...। गोपी की आँखों से विरह के अश्रु निकलने लगते हैं।
बाँवरी गोपी सोचती है कि जरा देखूँ, बाहर कहीं आया तो नहीं? फिर मन में सोचने लगती है। अरे, वो क्यों आएगा... मैं गरीब जो हूँ... वो तो अच्छे अच्छे घरों में जाता होगा... मेरा माखन भला उसे कहाँ भायेगा ? क्या करूँ, यह तड़प तो बढ़ती ही जाती है ... सुन ले न कान्हा मेरी पुकार...।
गोपी तो रुदन करते-करते कान्हा जी के बारे में सोचते-सोचते ही सो गयी। और हमारा लाला कन्हैया भी इसी अवसर की ताक में था। सारी बाल गोपाल मंडली चुपके चुपके आँगन से भोजन शाला की ओर बढने लगी और माखन की खोज शुरू हो गयी। कान्हा जी ने कहा, 'अरे मनसुखा!! तू तो कह रहा था कि गोपी ने बड़ा अच्छा माखन निकाला है। यहाँ तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा।"
अरे! अरे!! वो देखो, एक सुन्दर सी मटकी पड़ी है उसमें देखो ... अरे वाह!! मिल गया मिल गया!! आओ-आओ सभी आओ!! ढक्कन खोलो ... अहा कितनी सुन्दर सुवास है। तनिक खा कर तो बताओ कैसा है। अरे! स्वाद का तो कोई जवाब ही नहीं ... ऐसा माखन तो मैया ने भी कभी नहीं बनाया ...
मित्रों अब कान्हा जी का मनोरथ भी देखिए। कहते हैं, "आज तो मन यह कर रहा है कि यह गोपी अपनी गोद में बिठा कर अपने हाथों से यह माखन खिलाये। जरा कोयल की आवाज तो निकालो या ताली लगाओ ताकि गोपी जाग जाये।"
सखा बोले कि मार पडेगी हम सभी को, जो कोई आवाज भी निकली तो। कान्हा जी ने कहा, "कुछ नहीं होगा। मैं कहता हूँ वैसा करो।" बस फिर क्या? सभी ताली बजाने और कोयल की आवाज निकालने लगे।
बाँवरी गोपी तो पहले ही मंडली की आवाज से ही जागकर यह सब संवाद सुन सुन कर मन ही मन आनंदित हो रही है। और गोपी की आँखों में अब विरह के बदले हर्षाश्रु बह रहे हैं और अपनी सुध-बुध भूलती जा रही है।
कान्हा जी को ज्ञात था कि गोपी अंदर ही है। तो कान्हा जी अंदर गये तो देखा कि एक कक्ष में गोपी अपनी सुध-बुध खोए बैठी है और आँखों से अश्रु बह रहे हैं। कान्हा जी गोपी के पास जाकर कहते हैं, "अब यहाँ छुप के क्यों बैठी हो, आओ न माखन खिलाओ न। आज तो तेरे हाथों से ही माखन खाऊँगा। तेरा मनोरथ था कि आज मैं तेरे घर का माखन खाऊँ। तो मेरा भी यह मनोरथ है कि तेरे हाथों से माखन खाऊँ मैं तेरा मनोरथ पूर्ण करता हूँ तो तू भी मेरा मनोरथ पूर्ण कर।"
बाँवरी गोपी का तो मानों जन्म सफल हो गया। जन्मों की कामना फलीभूत हो गयी। अब गोपी कान्हा को गोद में लेकर माखन खिलाने लगी। आँखों से आँसुओं की धारा निरन्तर बहे जा रही है और कान्हा जी अपने नन्हें नन्हें हाथों से गोपी के आँसू पोंछ रहे है और खुद भी आँसू बहाते हुए कह रहे हैं - "अरी, तू रो क्यों रही है, देख मैं आ गया हूँ न, देख मैं हूँ न, देख मैं हूँ न।" गोपी रोते हुए माखन खिला रही है और कान्हा जी भी रोते हुए माखन खा रहे हैं। कितना अद्भुत और अलौकिक दृश्य है। ऐसे गोपी के भाग्य के क्या कहने।
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"जय जय श्री राधे"
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