जीवन में हमें अगर देहाभिमान से पार होना हो हम क्या करें? तो हनुमानजी की रिती अपनायें, जिससे हनुमानजी ने समुद्र को पार किया।
सिन्धु तीर एक भूधर सुन्दर।
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।
हनुमानजी की इस यात्रा में गोस्वामी जी ने बहुत अधिक पर्वतों का वर्णन किया है। पूरी यात्रा में हनुमानजी ने तीन पर्वत शिखरों का आश्रय लिया है।
जिस पर्वत पर चढ़ कर हनुमानजी समुद्र पार करने के लिए छलाँग लगाते हैं -वह है विचार का पर्वत।
सिन्धु तीर एक भूधर सुन्दर ।
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।।
इन सभी पर्वतों को गोस्वामीजी ने आध्यात्मिक अर्थों में प्रस्तुत किया है। इनमें पहला पर्वत शिखर ‘विश्वास’ का प्रतीक है, दूसरा ‘बिचार’ का और लंका दिखाने वाला तीसरा पर्वत ‘वैराग्य’ का।
पर्वत का अभिप्राय है, नीचे से ऊपर की ओर जाना। जब तक हम लोग नीचे से ऊपर की ओर उठने की चेष्टा नहीं करेंगे, तब तक जीवन में भक्ति देवी का साक्षात्कार नहीं कर पायेंगे। वैसे प्रत्येक ब्यक्ति जीवन में ऊपर उठने की चेष्टा ही तो कर रहा है। पर क्या उसे अपने कार्य में सफलता मिल रही है?
यानी जो गर्वीला ब्यक्ति होता है, वह भी ऊपर उठने की चेष्टा करता है, पर उसका उद्देश्य वही होता है,
पर जिन पर्वतों का आश्रय हनुमानजी लेते हैं, वे इससे भिन्न हैं। आपसे कहा गया कि, जिन तीन शिखरों पर चढ़ कर भक्ति की देवी सीताजी को पाया जा सकता है, वे हैं, विश्वास, विचार तथा वैराग्य के। यानी जिसके जीवन में विश्वास है, विचार है, वैराग्य है, वही भक्ति स्वरूपा सीताजी के निकट पहुँच कर उनका दर्शन कर सकता है।