कुछ लोग अज्ञानवश कृष्ण को साधारण योगी या फिर योगिराज कहते हैं। गीता में कृष्ण को योगेश्वर कहा है- "यत्र योगेश्वरः कृष्ण:..."। योगेश्वर का अर्थ है- जो योग का ईश्वर है और योग का नियंता है वो योगेश्वर है (योगस्य ईश्वरः नियंता वा यः सः योगेश्वरः)। सिद्ध योगीजन जिस ईश्वर को योगिक क्रिया के द्वारा प्राप्त करते हैं वो कृष्ण हैं। योग कृष्ण के अधीन है, लेकिन कृष्ण योग के अधीन नहीं है। वेद भी कहते हैं- "नारायण परम् ध्याता नारायण परम् धीमहि"
कृष्ण योग के नियंता हैं और इस संसार को आदिकाल में(वेदों के द्वारा) योग देने वाले हैं। उन्होंने स्वयं कहा है- "मत्त: स्मृतिर्ज्ञानमपोहनञ्च..."(गीता अध्याय १५) मैं स्मृति का प्रदाता और अपोहनकारी हूँ।
स्वयं को अन्य जीवों से अलग वे स्वयं इस प्रकार कहते हैं-
"वेदाहं समतीतानि...न त्वं वेत्थ परंतप" अर्थार्त -मुझे तेरे और मेरे समस्त जन्मों का (जो कि अनंत हैं) स्मरण है, लेकिन तुम्हें नहीं है।
इस प्रकार कृष्ण ने स्वयं को न केवल अंतर्यामी ईश्वर, सर्वज्ञ और सर्वव्याप्त घोषित किया है बल्कि सिद्ध भी किया है। वे नित्य-शुध्द-बुध्द-मुक्त-स्वभाव के योगेश्वर श्री कृष्ण सर्वेश्वर हैं।