टकला बाबा's Album: Wall Photos

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Adi-Shiva” by Abhishek Singh. *(सभी गुरुजनों को समर्पित !!)*

*गुरु न पद है, न पेशा है,*
*न व्यवसाय है ।*
*ना ही गृहस्थी चलाने वाली*
*कोई आय हैं।।*
*गुरु सभी धर्मों से ऊंचा धर्म है।* *गीता में उपदेशित*
*"मा फलेषु "वाला कर्म है ।।*

*गुरु एक प्रवाह है ।*
*मंज़िल नहीं राह है ।।*
*गुरु पवित्र है।*
*महक फैलाने वाला इत्र है*
*गुरु स्वयं जिज्ञासा है ।*
*खुद कुआं है पर प्यासा है ।।*

*वह डालता है चांद सितारों ,*
*तक को तुम्हारी झोली में।*
*वह बोलता है बिल्कुल,*
*तुम्हारी बोली में।।*
*वह कभी मित्र,*
*कभी मां तो ,*
*कभी पिता का हाथ है ।*
*साथ ना रहते हुए भी,*

*ताउम्र का साथ है।।*

*वह नायक ,खलनायक ,*
*तो कभी विदूषक बन जाता है ।*
*तुम्हारे लिए न जाने,*
*कितने मुखौटे लगाता है।।*

*इतने मुखौटों के बाद भी,*
*वह समभाव है ।*
*क्योंकि यही तो उसका,*
*सहज स्वभाव है ।।*

*गुरु कबीर के गोविंद सा,*
*बहुत ऊंचा है ।*
*कहो भला कौन,*
*उस तक पहुंचा है ।।*
*वह न वृक्ष है ,*
*न पत्तियां है,*
*न फल है।*
*वह केवल खाद है।*
*वह खाद बनकर,*
*हजारों को पनपाता है।*
*और खुद मिट कर,*
*उन सब में लहराता है।।*

*गुरु एक विचार है।*
*दर्पण है , संस्कार है ।।*

*गुरु न दीपक है,*
*न बाती है,*
*न रोशनी है।*
*वह स्निग्ध तेल है।*
*क्योंकि उसी पर,*
*दीपक का सारा खेल है।।*

*गुरु तुम हो, तुम्हारे भीतर की*
*प्रत्येक अभिव्यक्ति है।*
*कैसे कह सकते हो,*
*कि वह केवल एक व्यक्ति है।।*

*गुरु चाणक्य, सान्दिपनी*
*तो कभी विश्वामित्र है ।*
*गुरु और शिष्य की*
*प्रवाही परंपरा का चित्र है।।*

*गुरु भाषा का मर्म है ।*
*अपने शिष्यों के लिए धर्म है ।।*

*साक्षी और साक्ष्य है ।*
*चिर अन्वेषित लक्ष्य है ।।*

*गुरु अनुभूत सत्य है।*
*स्वयं एक तथ्य है।।*

*गुरु ऊसर को*
*उर्वरा करने की हिम्मत है।*

*स्व की आहुतियों के द्वारा ,*
*पर के विकास की कीमत है।।* *वह इंद्रधनुष है ,*

*जिसमें सभी रंग है।*
*कभी सागर है,*
*कभी तरंग है।।*

*वह रोज़ छोटे - छोटे*
*सपनों से मिलता है ।*
*मानो उनके बहाने*
*स्वयं खिलता है !*

*वह राष्ट्रपति होकर भी,*
*पहले गुरु होने का गौरव है।*
*वह पुष्प का बाह्य सौंदर्य नहीं ,*
*कभी न मिटने वाली सौरभ है।*

*बदलते परिवेश की आंधियों में ,*
*अपनी उड़ान को*
*जिंदा रखने वाली पतंग है।*
*अनगढ़ और बिखरे*
*विचारों के दौर में,*
*मात्राओं के दायरे में बद्ध,*
*भावों को अभिव्यक्त*
*करने वाला छंद है। ।*

*हां अगर ढूंढोगे ,तो उसमें*
*सैकड़ों कमियां नजर आएंगी।*
*तुम्हारे आसपास जैसी ही*
*कोई सूरत नजर आएगी ।।*

*लेकिन यकीन मानो जब वह,*
*अपनी भूमिका में होता है।*
*तब जमीन का होकर भी,*
*वह आसमान सा होता है।।*

*अगर चाहते हो उसे जानना ।*
*ठीक - ठीक पहचानना ।।*

*तो सारे पूर्वाग्रहों को ,*
*मिट्टी में गाड़ दो।*
*अपनी आस्तीन पे लगी ,*
*अहम् की रेत झाड़ दो।।*
*फाड़ दो वे पन्ने जिन में,*
*बेतुकी शिकायतें हैं।*
*उखाड़ दो वे जड़े ,*
*जिनमें छुपे निजी फायदे हैं।।*

*फिर वह धीरे-धीरे स्वतः*
*समझ आने लगेगा*
*अपने सत्य स्वरूप के साथ,*
*तुम में समाने लगेगा।।*

*आप सभी को गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं*