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पाकिस्तान में सिक्खों के हालत -

जब भी मैं देखता हूँ कि सिक्खों संगठन खालसा एड रोहिंग्या मुसलमानों की मदद कर रहा था तोआश्चर्य होता है. वैसे भारत और पाकिस्तान मुस्लिमो के लिए औरंगजेब आदर्श है. वही औरंगजेब जिसने गुरु पुत्रों को जिन्दा दीवार में चिनवा दिया था. मुझे लगा कि सिख गुरुओं और मुसलमान बादशाहों के इतिहास का किस्सा पुराना हो गया है.

परन्तु तभी ध्यान आता है इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान का सिक्खों के साथ व्यवहार .

पाकिस्तान में पिछली जनगणना (2017) में सिक्खों की गिनती ही नहीं की गई. इस से पहले 1981 की जनगणना में भी सिक्खों को नजर अंदाज किया गया था. शायद पाकिस्तान की सरकारी मशीनरी सिक्खों को मुसलमानों की तरह इंसान ही नहीं मानती.

पेशावर के 30 हजार सिखों में से 60 फीसदी से ज्यादा अब पलायन करके पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में चले गए हैं।

- 2016 में पाकिस्तान तहरीक-ए इंसाफ पार्टी के सांसद और सिख समुदाय के सोरन सिंह की हत्या कर दी गई थी। तालिबान ने इस हत्या की जिम्मेदारी ली थी। इस सबके बावजूद स्थानीय पुलिस ने इस हत्या के आरोप में उनके पॉलिटिकल कॉम्पिटीटर और अल्पसंख्यक हिंदू राजनेता बलदेव कुमार को अरेस्ट कर लिया। इसके बाद करीब दो साल तक इस मामले की सुनवाई चली। कोर्ट ने बलदेव को रिहा कर दिया।

- पेशावर में रह रहे सिख हिंसा, भेदभाव और नरसंहार ही नहीं, कई और परेशानियों का भी सामना कर रहे हैं। यहां उनके लिए एक श्मशान तक नहीं है। खैबर पख्तूनख्वा सरकार ने श्मशान के लिए बीते साल फंड दिया था, लेकिन अभी तक इसका काम शुरू नहीं हो पाया। यही नहीं, श्मशान के लिए आवंटित जमीन को अब प्राइवेट बैंक, वेडिंग हॉल और बाकी कंपनीज को दिया जा रहा है।

- कुछ मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान सरकार लगातार इस बात को नजरअंदाज कर रही है कि सिख समुदाय को उसके सपोर्ट और सिक्युरिटी की जरूरत है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हालात ये हो गए हैं कि यहां रह रहे सिखों को अपनी पहचान छिपाने के लिए बाल कटवाने पड़ रहे हैं और पगड़ी हटानी पड़ रही है।

पेशावर में मई के अंतिम सप्ताह में किराने की दुकान चलाने वाले सिख ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट चरणजीत सिंह की उनकी ही दूकान पर गोली मार कर हत्या कर दी गई .

(चित्र में चरनजीत सिंह जी की शवयात्रा)