निखिल रंजन's Album: Wall Photos

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90 के दशक में भारत के अंदर लाल आतंक सर चढ़कर बोल रहा था। एक तरफ कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को भगाया जा रहा था तो वहीं दूसरी ओर देश के अंदर लाल आतंक के कहर का आलम यह था कि लोग अपने पत्नी - बच्चों को लेकर अपने घरों में दुबके रहते थे। धीरे धीरे यह लाल आतंकी, बुद्ध और महावीर की भूमि कहे जाने वाले बिहार, में पांव पसारने शुरू कर दिया और जंगल में लगे आग की तरह पूरे बिहार में फैल गया। सत्य और अहिंसा भूमि में सरेआम नरसंहार किये जाने लगे, किसानों की जमीनों पर जबरन लाल झंडे गाड़े जाने लगे, लोगों की फसलों और जानवरों को दिनदहाड़े लुटा जाने लगा पूरा बिहार भय और ख़ौफ़ से कांप उठा ... ठीक उसी समय आरा जिले के खोपिरा के मुखिया ब्रह्मेश्वर सिंह जो पेशे से शिक्षक थे उनके नेतृत्व में राष्ट्रवादी किसान संघ का गठन किया गया जिसका एक मात्र लक्ष्य किसानों के हितों की रक्षा करना था परंतु लाल आतंक के खूनी खेल को रोकने के लिए यह पर्याप्त नहीं था फलस्वरूप खोपिरा के ही रिटायर फौजी पहलवान रणवीर सिंह के नाम पर रणवीर सेना का गठन किया गया और सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत हुई। रणवीर सेना के सामने लाल आतंकियों की कमर टूट गई परिणामस्वरूप कब्जाए हुए जमीनों को छोड़कर भाग खड़ा हुआ। कहानी यहीं खत्म नहीं हुआ, रणवीर सेना के सामने जब इन लाल आतंकियों की दाल नहीं गली तो जातिगत संघर्ष फैलाना शुरू कर दिया, बहुत हद तक इसमें कामयाब भी हुआ। कहा जाता है कि इसे तत्कालीन सरकार का सरंक्षण प्राप्त था, बावजूद इसके ब्रह्मेश्वर बाबा ने अपना धैर्य नहीं खोया और अपनी चातुर्य से इसमें भी उसे परास्त किया। सरकार ने राष्ट्रवादी किसान संघ के नेता ब्रह्मेश्वर मुखिया को जेल भेज दिया लेकिन आरोप सिद्ध नहीं होने के कारण उन्हें छोड़ना पड़ा। मुखिया जी प्यार से लोग बाबा कहते हैं। बाबा की इच्छा थी कि किसानों को संगठित कर राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान चलाया जाय और स्वामी सहजानंद की विरासत को आगे बढ़ाए लेकिन हाय! उनका सपना पूरा हो न सका..... कहा जाता है कि उन्हीं के समाज यानी भूमिहार - ब्राह्मण- राजपूत के ही कुछ क्षुद्र स्वार्थी विभीषणों ने मौत की घाट उतार दी।मामला सीबीआई के पास है....आज उनकी पुण्यतिथि है। पूरा किसान वर्ग उन्हें याद कर रहा है । मेरी तरफ से भी एक आस्था का फूल इस महान ब्रह्मऋषि कुलनन्दन के कदमों में अर्पित......सवाल अनेकों हैं ??? भारत की राजनीतिक विडम्बना ही है कि एक किसान नेता को जिस प्रकार सम्मान मिलना था, मिल न सका उल्टे उनकी छवि को नकारात्मक तरीके से प्रस्तुत किया जाता रहा यह क्रम आज भी जारी है। खैर ! ब्रह्मेश्वर मुखिया के चाहने वालों की संख्या लाखों में है यही कारण है कि आज भी पूरा उत्तर प्रदेश,बिहार,झारखंड उन्हें याद कर रो पड़ते हैं खासकर किसान लोग।
नमन ।
#जय_परशुराम