राघवेन्द्र कुमार पटेल's Album: Wall Photos

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भारत के इतिहास में सिर्फ एक वर्ग की चाटुकारिता में लिप्त रहने वाले कुछ विशेष लोगो को शायद ही उस वीर योद्धा की विस्तृत जानकारी हो. बिना ढाल और बिना तलवार का भारत का झूठा इतिहास बताने वाले नकली कलमकारों को शायद ही पता हो इस वीर बलिदानी के बारे में कि कितनी रक्तरंजित रही है भारत के पवित्र इतिहास की कहानी. भारत के उसी पावन इतिहास के स्वर्णिम अध्याय हैं भारत की शान महाराजा रणजीत सिंह।

महाराजा रणजीत सिंह का नाम भारतीय इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है. पंजाब के इस महावीर नें अपने साहस और वीरता के दम पर कई भीषण युद्ध जीते थे. रणजीत सिंह के पिता सुकरचकिया मिसल के मुखिया थे. बचपन में रणजीत सिंह चेचक की बीमारी से ग्रस्त हो गये थे, उसी कारण उनकी बायीं आँख दृष्टिहीन हो गयी थी. लेकिन इसको उन्होंने कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. किशोरावस्था से ही चुनौतीयों का सामना करते आये रणजीत सिंह जब केवल 12 वर्ष के थे तब उनके पिताजी की मृत्यु (वर्ष 1792) हो गयी थी. खेलने -कूदने कीउम्र में ही नन्हें रणजीत सिंह को मिसल का सरदार बना दिया गया था, और उस ज़िम्मेदारी को उन्होने बखूबी निभाया.
महाराजा रणजीत सिंह स्वभाव से अत्यंत सरल व्यक्ति थे. महाराजा की उपाधि प्राप्त कर लेने के बाद भी रणजीत सिंह अपने दरबारियों के साथ भूमि पर बिराजमान होते थे. वह अपने उदार स्वभाव, न्यायप्रियता की उच्च भावना के लिए प्रसिद्द थे. अपनी प्रजा के दुखों और तकलीफों को दूर करने के लिए वह हमेशा कार्यरत रहते थे. अपनी प्रजा की आर्थिक समृद्धि और उनकी रक्षा करना ही मानो उनका धर्म था. महाराजा रणजीत सिंह नें लगभग 40 वर्ष शासन किया. अपने राज्य को उन्होने इस कदर शक्तिशाली और समृद्ध बनाया था कि उनके जीते जी किसी आक्रमणकारी सेना की उनके साम्राज्य की और आँख उठा नें की हिम्मत नहीं होती थी.
महा सिंह और राज कौर के पुत्र रणजीत सिंह दस साल की उम्र से ही घुड़सवारी, तलवारबाज़ी, एवं अन्य युद्ध कौशल में पारंगत हो गये. नन्ही उम्र में ही रणजीत सिंह अपने पिता महा सिंह के साथ अलग-अलग सैनिक अभियानों में जाने लगे थे.
अपने पराक्रम से विरोधियों को धूल चटा देने वाले रणजीत सिंह पर 13 साल की कोमल आयु में प्राण घातक हमला हुआ था. हमला करने वाले हशमत खां को किशोर रणजीत सिंह नें खुद ही मौत की नींद सुला दिया.
बाल्यकाल में चेचक रोग की पीड़ा, एक आँख गवाना, कम उम्र में पिता की मृत्यु का दुख, अचानक आया कार्यभार का बोझ, खुद पर हत्या का प्रयास इन सब कठिन प्रसंगों नें रणजीत सिंह को किसी मज़बूत फौलाद में तबदील कर दिया.