क्यों हर शहर का आख़िर ये अंजाम होता है
इंसान मुफ्त और इंसानियत का दाम होता है।
कैसे रखेगा कोई हिसाब, बेहिसाब दर्द का
अंतहीन सिलसिला जुल्म का सुबह शाम होता है।
खाली पेट लड़ता है कोई तकदीर से दिन भर
फैकने के लिए भी किसी के पास तमाम होता है।
भरता है पेट, पीकर पानी, जिनके पेट के लिए
खाली पेट हाथ में, उन्ही लोगो के जाम होता है।
कर देते है बात बात में वो इंसानियत को रुसवा
बगल में उनके छुरी मुंह में राम का नाम होता है।
कर देते है कत्ले आम चुटकियों में जो
सियासत का ताज उनका इनाम होता है।
कुचले जाते है अमीरों के पैरो तले रात दिन
गरीबी में पैदा होने का यही अंजाम होता है।