किसी के कट रहे है दिन ,किसी के कट रहे है पैर,
कोई अपने मकान के आंगन में झूला झूलता
कोई अपने मकान की राह में मिट्टी में मिलता धूल सा
कोई गिनती सीखता अपने आशियाने की चार दिवारी में
पर कहीं कोई ना गिनता जो लाशों का गट्ठर सड़ रहा अस्पतालों में
कोई लिप्त है महाभारत, रामायण और विष्णु की गाथा में
कोई थक गया पूछ हमारे साथ कैसा खेल रचा विधाता ने
किसी के मिट रहे है फासले ,किसी के सिमट रहे है आसरे
किसी के कट रहे है दिन ,किसी के कट रहे है पैर,..............
कोई अपनी रसोई में पकवान रोज नए बनाता है
कोई एक सूखी रोटी के निवाले के लिए तरस जाता है
कोई रोता सांझ तक अपने प्रियजनों से ना मिल पाने पर
कोई सोता किसी किनारे मीलो थक जाने पर
कोई खुशियों से भर उठा है जिदंगी को अपने गले लगाकर
कोई बस ये मांगता कि अंतिम क्षणों में चार लोग उठा ले अपने कंधो पर
किसी को मिल रही है खुशियों के नए मायने
किसी को मिल रही है मौत उसके खड़ी सामने
किसी के कट रहे है दिन ,किसी के कट रहे है पैर,...........