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आपने अनारकली का नाम जरूर सुना होगा.

लेकिन,क्या आप जानते हैं कि... अनारकली कौन थी???ल

असल में.... भारतीय इतिहास में जब भी अमर प्रेम-कहानियों का जिक्र होता है... तो, सलीम और अनारकली का नाम जरूर आता है.

इस प्रेम-कहानी को लोगों ने बड़े पर्दे पर "मुगल-ए-आजम" में देखा और उसे खूब पसंद भी किया.

लेकिन, असल में ये कहानी क्या थी... वो आज भी एक रहस्य ही है.

क्योंकि... आज के भारत की कॉकटेल पीढ़ी के लिये यही मात्र इतिहास है जो 1962 में के. आसिफ की फ़िल्म "मुगल-ए-आजम" द्वारा स्थापित किया गया था.

परंतु... आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि.... यह एक ऐसा इतिहास है.... जो, खुद इतिहास में ही कहीं दर्ज नहीं है.

आश्चर्यजनक रूप से.... इस तथाकथित अनारकली का कहीं पर कोई जिक्र न अकबर के शासनकाल पर लिखित अबुल फजल की "अकबरनामा" में है... और, न ही सलीम उर्फ जहांगीर की ‘"तुजुक-ए-जहाँगीरी" में है.

इसीलिए.... इसको जानने और समझने के लिये हमें 1920 के लौहार चलना पड़ेगा... जहाँ, एक नाटककार इम्तियाज़ अली ताज था... जो, उस वक्त गवर्मेंट कॉलेज लाहौर में पढ़ता था.

उस इम्तियाज ने अपने कॉलेज के पास बने एक पुराने मकबरे को देखा था... जिसे, अनारकली का मकबरा कहा जाता था.

वहां उस अनजान से कब्र पर यह दोहा लिखा हुआ था.

"ता कयामत शुक्र गोयं कर्द गर ख्वाइश रा
आह गर मन बज बीनाम रुइ यार ख्वाइश रा"
~मजनू सलीम अकबर

अर्थात.... हे खुदा, में तुझको कयामत तक याद करूँगा,
एक बार फिर मेरे हाथों में महबूबा का चेहरा आ जाये.

बस.... इम्तिहाज़ अली ताज ने उस मकबरे पर जहाँगीर की इश्क में डूबी हुई दो लाइन और लाहौर में बुजुर्गों से सुने मुगलिये किस्सों को पिरो कर आशिकी का एक नाटक लिखा और दुनिया को सलीम अनारकली की "दास्तान-ए-मुहब्बत" पेश कर दी.

आगे चलकर के. आसिफ ने एक राजनैतिक प्रोपेगेंडा को स्थापित करने के लिये और बहुसंख्यक हिन्दुओ के बीच मुसरिम इतिहास और खुद मुसरमानों की छवि अच्छी बनाने के लिये अकबर को धर्मनिरपेक्षता का आदिपुरुष बना कर परोस दिया.

और, इस नाटक में उसने अकबर को एक ऐसा मुगल शासक दिखाया गया जो न सिर्फ धर्मनिरपेक्ष था... बल्कि, जोधा बाई नामक अपनी हिन्दू पत्नी को हिन्दू ही रहने देता है.
जबकि वास्तविक इतिहास इसके बिल्कुल उलट है.

इसी फिल्मी इतिहास के घाल-मेल में अनारकली को जीवन दान देने वाला अकबर महान हो गया और खुद लाहौर में अनारकली का मकबरा होते हुये भी अनारकली ही गुम हो गयी.

अब चलते है 19 वीं शताब्दी में... जब पहली बार किसी भारतीय लेखक ने अनारकली का नाम लिया था.

पहली बार .... नूर अहमद चिश्ती ने 1860 में अपनी किताब "तहक़ीक़ात-ए-चिश्तिया" में लिखा कि अकबर महान की सबसे खूबसूरत और पसंदीदा "रखैल" अनारकली थी... जिसका "असली नाम... नादिरा बेगम" उर्फ "शरफ़-उन-निस्सा" था.... जो कि, ईरान के व्यापारियों के साथ आई थी.

ऐसा माना जाता है कि.... उसकी मौत, हरम की दूसरी जलनखोर रखैलों द्वारा जहर देने से हुई थी.

अनारकली का दुबारा जिक्र... 1892 में सईद अब्दुल लतीफ की "तारीख-ए-लाहौर" में आया है.... जिसमे लिखा है कि, अनारकली का नाम नादिरा बेगम उर्फ शर्फुन्निसा ही था....
और, वो अकबर की रखैल थी... लेकिन, उसको अकबर ने सलीम के साथ अवैध सम्बन्ध होने के शक में जिंदा चुनवा दिया था.

लेकिन, इतिहास में अनारकली का पहला जिक्र एक ब्रिटिश व्यापारी विलियम फिंच के संस्मरणों में मिलता है.

फिंच ने 1608 से 1611 तक में नील का व्यापार करने के लिये लाहौर की यात्रा की थी और उस वक्त जहांगीर को बादशाह बने 3 वर्ष हो चुके थे.

उस फिंज ने लिखा है कि अनारकली बादशाह अकबर की बीबियों में से एक थी... जिसकी उम्र करीब 40 साल की थी... लेकिन, वो बहुत खूबसूरत थी.

वो (अनारकली) अकबर के पुत्र दानियाल शाह की मां थी.

लेकिन... अकबर को यह शक हो गया था कि... उसकी बीबी अनारकली का उसके बेटे सलीम जो उस वक्त करीब 30 साल का था और तीन बच्चों का बाप था... के साथ "इन्सेस्टियस" (सगे-सम्बन्धियो में यौनाचार्य) सम्बंध है.
इससे कुपित अकबर ने अनारकली की ज़िंदा चुनवा दिया था.

इसके बाद जहांगीर जब 1605 में बादशाह बना तो अपनी मुहब्बत के प्रतीक के तौर पर अनारकली की कब्र पर मकबरा बनवाया.

विलियम फिंच के बाद आये एक ब्रिटिश यात्री एडवर्ड टैरी जो फरवरी 1617 से 1619 तक दो वर्षो तक यहीं रहा था.

वो विलियम.... "ए वॉयेज टू ईस्ट इंडिया" नामक संस्मरण में स्पष्ट लिखता है कि... वह पूर्व बादशाह अकबर और वर्तमान बादशाह जहाँगीर (सलीम) के मध्य कटुता का मुख्य कारण सलीम द्वारा अपनी सौतेली माँ से बनाये गये शरीरिक सम्बन्ध को ही मानता है.

उसके मतानुसार व्यसनी सलीम के व्यसन एवं विद्रोह इस पाश्विक कुकृत्य के समक्ष नगण्य हो जाते थे... अतः, अकबर कभी भी सलीम को माफ न कर सका.

बादशाह अकबर ने शहजादे सलीम को उत्तराधिकारी से हटा देने की धमकी भी दी थी.

इसी बात को अब्राहम रैली ने 2000 में प्रकाशित अपनी किताब "द लास्ट स्प्रिंग: द लाइव्स एंड टाइम्स ऑफ द ग्रेट मुग़लस" में शंका व्यक्त करते हुए लिखा है कि... ऐसा लगता है कि अकबर और सलीम के बीच "ओएडिपालकॉन्फ्लिक्ट" (माँ और पुत्र के बीच सम्भोग को लेकर संघर्ष) था.

उन्होंने यहां अनारकली के शहजादे दानियाल होने की संभावना को भी व्यक्त किया है.

रैली ने अपनी बात को सिद्ध करने के लिये अब्दुल फजल... जिन्होंने, अकबरनामा लिखी थी... द्वारा उल्लेखित एक घटना को आधार बनाया है.

वो लिखते है कि... एक शाम.. शाही हरम के पहरेदारों ने हरम में पकड़े जाने पर सलीम को पीटा था.

कहानी यह बताई जाती है कि... एक पागल शाही हरम में घुस आया था और सलीम उसको पकड़ने के लिए हरम में घुस आया था... लेकिन, पहरेदारों ने उसी को पकड़ लिया था.

यह सुनकर कि... कोई हरम में घुस आया है...बादशाह अकबर गुस्से में खुद ही वहां पहुंच गये और तलवार से उसका गला काटने जा रहे थे... तभी, उन्होंने सलीम का चेहरा देख कर हाथ रोक लिया था.

रैली का मानना है कि... शाही हरम में सलीम ही घुसा था.. लेकिन, उसको बचाने के लिये एक पागल का जिक्र किया गया है.

इस तरह.... 16 वीं शताब्दी में जन्मी और मरी अनारकली...21वीं शताब्दी में अकबर की बीबी/रखैल की यात्रा करते हुये 5 शताब्दियों में अकबर के दरबार की बांदी बन चुकी है.

वो अनारकली ... शहजादे सलीम की मां से... शहजादे सलीम उर्फ जहांगीर की महबूबा बन चुकी है.

और.... वो, अब अपने बेटे से इन्सेस्टस अवैध यौन सम्बंध रखने वाली से... सलीम के प्रेम में गिरफ्त "मुगल-ए-आज़म" बन चुकी है....

तथा, हम आज भी... "प्यार किया कोई चोरी नही की, छुप छुप आहें भरना क्या"... नामक गीत को सर-माथे पर बैठाकर बिना इतिहास जाने मस्ती के साथ गुनगुना रहे हैं.

जय महाकाल...!!!

सोर्स : Open Media