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Posted by
Inbooker April 14, 2017 -
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Society
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#Indian Army
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आज बचपन मे एक पढ़ी हुई कहानी याद आगई, जो शायद आप लोगो ने भी पढ़ी होगी।
किसी गांव में एक पुराने पीपल के पेड़ में एक सर्प रहता था। वैसे तो वह दिन भर वह अपनी बांबी में घुसा रहता था लेकिन जब वहां कोई राहगीर रुकता था या बच्चे खेलने आते थे, तो वह उनको काटने के लिए दौड़ पड़ता था। पूरा गांव उस से त्रस्त था। सबने कई जतन किये लेकिन वे न उस सर्प को मार सके और न ही उसको वहां से भगा ही सके।
इसी बीच जब उस गांव में एक साधु महाराज पहुंचे, तो गांव वालों ने उनसे इस के बारे में बताया और उनसे प्रार्थना की, 'हे महाराज, कुछ ऐसा उपाय कीजिये कि गांव वालों को इस सर्प से मुक्ति मिल जाय।' साधु ने उनकी बात सुनी और कहा कि ,'मुझे उस पीपल के पेड़ तक ले जाओ, मैं उस से बात करूंगा कि वह अपनी प्रवत्ति को छोड़ दे।' जब साधु उस पीपल के पेड़ के पास पहुंचे तब सर्प अपनी आदतानुसार अपनी बांबी से निकल आया और साधु को काटने दौड़ा। साधु ने उसको अपने तेज़ से रोक दिया और उसको समझाया कि उसकी इस प्रवत्ति से गांव वालों को बड़ा कष्ट होता है, इसलिए उसे अपना व्यवहार बदल देना चाहिए। वह काटना छोड़ देगा तो गांव वाले भी उसको तंग नही करेंगे।
सर्प पर, साधु की बात का बड़ा असर हुआ और उसने साधु को वचन दिया कि अब वह न किसी को दौड़ाएंगे और न ही काटेगा। साधु ने उस को आशीर्वाद दिया और गांव वालों को सर्प के बारे में बताकर दूसरे गांव चले गए। अब जब गांव में यह पता चल गया कि सर्प अब नही कटेगा तब गांव वाले बिना भय के उस पीपल के पेड़ पर जाने लगे और बच्चे भी वहां खेलने लगे। इधर सांप ने देखा की लोग आते जाते रहते है, बच्चे उधम करते रहते है लेकिन कोई उसको अब परेशान नही करता है तो वह भी लोगो के सामने बिना डर के निकलने लगा।
शुरू में तो सर्प को खुलेआम बाहर घूमते हुए, धूप सकते हुए देख कर लोग थोड़ा चौंके लेकिन फिर पूरे गांव को सर्प की आदत सी हो गयी। अब, जब बच्चों ने यह देखा कि वह कुछ कर ही नही रहा है तो उनका भी डर निकल गया और उसको पकड़ कर खेलने लगे। अब सब बच्चे एक से तो होते नही है, सो जो शरारती और दुष्ट प्रवत्ति के बच्चे थे, वह उस सर्प को जब चाहा लतिया देते थे, कभी ढेले से मार कर अपना निशाना पक्का करते थे और कभी उसको लकड़ी से लटका कर फेंक देते थे। अब क्योंकि सर्प ने साधु को वचन दिया हुआ था इस लिए इतनी मार खाने के बाद भी सर्प कुछ नही करता था। धीरे धीरे, उस के संग हो रहे दुर्व्यवहार से उसका शरीर घायल हो गया और कई जगह से उसके शरीर से खून निकलने लग गया।
कुछ दिनों बाद जब वही साधु महाराज उस गांव में दोबारा पधारे तो उन्होंने एक खेत की मेड पर, उस घायल पड़े सांप को देखा। उसकी यह दारुण हालत देख कर साधु ने उससे पूछा कि, 'अरे विषधर! तुम्हारी यह हालत कैसे हो गयी?' सर्प ने साधु की तरफ कातर दृष्टि से देखते हुए,करहाते हुए कहा,' महाराज, आपने ही मुझसे यह वचन लिया था कि मैं भविष्य में गांव वालों को कुछ नही करूँगा, इसी लिए दुष्ट लोगो ने मेरी यह हालत कर दी है।'
साधु ने सर्प को सहलाया और कहां,'वत्स, मैंने तुमको काटने के लिए मना किया था लेकिन फुंफकारने से थोड़े ही रोका था?' और यह कह कर साधु वापस चले गए। अगले दिन बच्चे फिर उस सर्प की बांबी में पहुंच कर उसे लकड़ी से निकालने लगे। इस बार सर्प जैसे ही बाहर निकला, उसने जोर से फुँफकारा। उसकी फुँफकार को सुन कर, बच्चों में भगदड़ मच गई और वे सब चिल्लाते हुए भाग खड़े हुए।
उस दिन के बाद से बच्चों ने सांप को छेड़ना तो बन्द किया ही वही सांप की फिर से धमक हो गयी और वह अमन शांति से रहने लगा।
कल जब से सीआरपीएफ के जवानों के साथ कश्मीरी मुसलमान लौंडों के दुर्व्यवहार का वीडियो देखा है, यह कहानी मेरे दिमाग मे चल रही है। यह वीडियो जिस रफ्तार से सोशल मीडिया में फैला है और जिस तरह की प्रतिक्रियाए भारतीय जनता से आरही है वह भविष्य के लिए बड़ा शुभ संकेत है। मैं मानता हूं कि पूरे घटनाक्रम के जो यह वीडियो आराहे है, वह वीडियो लाये जाराहे है और इसको आने दिया जाना चाहिए। इस वीडियो और कश्मीरी मुसलमानो को लेकर लोगो का आक्रोशित होना बड़ा स्वाभविक है और आक्रोश में भारतीय नेतृत्व को लानते भेजने का जो कार्यक्रम है उसमें भी कोई बुरी बात नही है क्योंकि जिनको लानते दी जारही है, वह इसके लिए तैयार है। यह वीडियो वर्तमान को भविष्य के लिए तैयार कर रहा है।
देखा जाय तो यह वीडियो दो धारी तलवार है। भारतीय परिपेक्ष में, यह धार जहां उस सेक्युलर वर्ग को जो तीन तलाक और मोदी योगी के अवतरण से आहत है को आत्मघाती आंतरिक खुशी में दूरदृष्टि से अभाव ग्रसित कर रही है वही कश्मीरी मुसलमान के साथ शेष भारत के कट्टरपंथियों को एक छद्दम विजय का एहसास देकर, उन्हें बेलगाम होने का पूरा मौका दे रही है। अंतराष्ट्रीय परिपेक्ष में यह धार, विश्व समुदाय को यह संदेश दे रही है कि भारतीय सेना, एक अनुशासित सैन्य बल है जो राजनैतिक नेतृत्व के अधीन, विषम परिस्थितियों में बिना हिंसक हुए, अपने काम मे लगी रहती है। विश्व को यह दिखाना है कि बलूचिस्तान में नरसंहार कर रही पाकिस्तानी सेना के विपरीत भारतीय सेना कश्मीर में संयम की आखिरी सीमा तक हिंसात्मक प्रतिक्रिया से परहेज करती है।
अब, जब आपरेशन पीओके( सिर्फ कश्मीर की घाटी नही) शुरू होगा, तब सेना पूरी तरह खुली होगी और शेष विश्व, चिल्लाने की रस्मअदायगी करके, कश्मीरियों की लाशो से आंख मूंद लेगी।
ऊपर कहानी में तो साधु ने फुंफकारने की छूट दी थी लेकिन दिल्ली में कोई साधु नही बैठा है।
मेरी बात याद रखियेगा, कृष्ण निर्मोही है।