ये अँधा कानून है, ये अँधा कानून है!
ये लोकप्रिय गाना आपने अमिताभ के मुँह से सुना होगा, हम लोग गाते भी है और हमरे नेता और पत्रकार भाई अपनी सुविधा के हिसाब से पक्ष और विपक्ष में उपयोग कर लेते है.
क्यों कर लेते है, अब भैया सही कारण तो वो ही जाने लेकिन हमको लगता है उनको हमारा समाज भी अन्धो का समाज ही लगता है.
हा भैया सही समझे हमने अन्धो का समाज ही कहा.
आप जानते है ना, आँख से लाचार व्यक्ति ( मुझे उनके प्रति सम्मान की भावना है और मेने पाया बो हमसे ज्यादा प्रतिभावान है), अपने आसपास के माहौल से परिचित होने के बढ़, आराम से विचरण कर लेता है लेकिन अनजान रस्ते के लिए या तो बो छड़ी का सहारा लेता है या फिर लोगो का.
में अपने समाज को अँधा कहता हूँ बल्कि नेत्रहीन लोगो से भी लाचार क्योंकि इनके आँखे नहीं होने से अन्य इन्द्रिय की क्षमता बढ़ जाती है लेकिन हमारा समाज अँधा समाज जिसकी अक्षमता, हांजी हाँ, अक्षमता का हमारे नेता गण भरपूर दोहन करते है.
अब बताओ हमारे समाज के हाथ में सुविधा अनुसार लाठी पकड़ा दी गयी और चरित्रवान नेता उसका उपयोग करते है. कैसे करते हैं, आप खुद देख लीजिये
1. पद्मावती की शूटिंग के दौरान खबर फैली की फिल्म में आपत्तिजनक चित्रण है, करनी सेना सड़को पे, भंसाली दादा का विरोध, 2 महीने तक पत्रकारो की चाँदी, फिल्म आयी चली और चली गयी, साला अपुन को समझ में नहीं आया की विरोध की अफवाह किसने फैलाई ( आपको भी नहीं आया अंधे जो हो), विरोध किसने किया फिर सब कुछ शांत. अंधे समाज के कटोरे में से ( अपुन ने भी एक बार उठाये थे पैसे) नैतिकता के सिक्के उठा कर, नेता अभिनेता और निर्माता साहेब ने पार्टी कर ली.
2. पुणे के पास कन्हैया महान, खालिद बलवान और जिग्नेश शक्तिमान आये और जहा आज तक कुछ नहीं हुआ, वहा पे आग लगायी और झुलस गया फिर से अँधा समाज, हाँ हाँ वो ही समाज जो एक दूसरे की चिंता करता था , रोटी खिलाता था. वो समाज समझ ही नहीं पाया ( अँधा जो है) की, उसकी रोटी तो ये लोग छीन ले गए.
3. एक और आंदोलन दलित के नाम पे, और फिर से अँधा समाज, उच्चतम न्यालय का निर्णय आया और कुछ बेरोजगार गिद्ध रुपया नेताओ को मरने वाला समाज दिखने लगा और मंडराने लगे उसके ऊपर और हम लोग उनके कहने पे एक दूसरे को मारने लगे. अंधेपन की पराकाष्ठा तो देखो, सेना के वहाँ पे हमला , नवजात शिशु की हत्या और बुजुर्गो का कैलाशवास और उस सम्पति का नुकसान जो उन्ही की थी. और अंधे समाज के कर्णधार, बो दलित बेटी जिसके यहाँ नोटों के भंडार मिले, बो खानदानी गाँधी जिसने दलित को दलित बना के रखा, और वो मुख्यमंत्री जो कहता है "किसी के बाप में दम नहीं जो आरक्षण हटा ले" और वो अफसर जिसके यहाँ अभी अभी चौथी पीड़ी का जन्म हुआ है दबे कुचले वर्ग के नाम पे आरक्षण लेने के लिए.
उपरोक्त उदाहरणों से आपको लगता है क्या हमारे समाज के पास आंखे है , भाई मुझे तो नहीं लगता. अरे जिस समाज में एक लड़का भगवा पहन के करनी सेना बनता हो , नीला पहन के दलित बनता हो और आतंक फैलाता हो, जो समाज एक मूर्ति के तोड़ने पे दूसरे वर्ग के घर जलाता हो, ( मेरा हिंदी फिल्मो का ज्ञान कहता है की घर के अंदर वाले ही पैसे लेके ये काम करते है)
जो समाज रंग और मूर्तियों से पहचाना जाता हो, जिसको देश के अलावा हर चीज से प्यार हो, जिसको तिरंगे से ज्यादा खुद के रंगो पे अभिमान हो जो भारत माता की मूर्ति को खंडित करने पे तत्पर रहता हो वो समाज अंधे के आलावा और कुछ नहीं हो सकता है.
अरे हाँ में तो भूल ही गया, मुझे एक जलसे का न्योता आया है जिसमे सभी रंगो वाले , सभी मूर्ति वाले और सभी टोपी वाले एक सी शराब और शबाब में नहाएंगे.
किस उपलक्ष्य में? अरे यार , अंधे लोगो से तीन बार दंगे करवा लिए.
आप भी आएंगे? पगलाए हो का? अन्धो का वहाँ क्या काम और हाँ नए मुद्दे पे जल्द ही तुम्हे बुलाएँगे तब तक अपने चिलम और हुक्का में आग भरो.
जय हिन्द ?