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राजकीय गुलामी से मानसिक गुलामी तक

  • राजकीय गुलामी से मानसिक गुलामी तक

    एक बार दो बंदर मिलकर एक रोटी को उठा लाये. दोनों ही खुश थे परन्तु एक समस्या आयी की रोटी का बंटवारा कैसे करे? उन्होंने एक बिल्ली को नियुक्त किया और उसने बंटवारा करते करते सारी रोटी खा ली.

    दो राज्यों के राजा आपस में दुश्मनी रखते थे परन्तु शक्ति में बराबर थे. कुछ अंग्रेजो ने एक राजा के सामने मदद का प्रस्ताव रखा और उसके बाद क्या हुआ वो सर्वविदित है.

    आप लोग चकित होंगे की उपरोक्त प्रसंग क्यों ?
    चलिए राज खोलने से पहले एक बाद समझ लेते है , गुलामी और आजादी का निर्णय कुछ  चंद लोग करते है वो या तो सत्ताधीश होते है या फिर बुद्धिजीवी.
    आज जमाना सोशल मीडिया का है , सरकार से लेकर व्यापारी और विरोधी भी आपको इसी मीडिया के द्वारा प्रभावित करने की कोशिश करती है.
    मुझे शुरू में इस मीडिया से ज्यादा लगाव भी नहीं था और इच्छा भी  नहीं थी लेकिन आना पड़ा बहुत सारे और लोगो की तरह जिन्हे नहीं मालूम की वो यहाँ क्यों है , कुछ दिनों में कुछ  लोगो की मैं और कुछ लोग मेरे फोलोअर बन गया.
    ऐसे ही एक प्लेटफार्म ट्विटर पर जाने का मौका मिला और कुछ दिनों में बुद्धिजीविओ की गाली गलोच देखकर चकित रह गया   जिन बुद्धजीविओ और पत्रकारों को शालीनता और निष्पक्षता की मूर्ति समझता था वो तो मावलीओ की तरह से किसी आदमी और विचारधारा के लिए लड़ रहे और और उसी के हिसाब से प्रतिक्रिया दे रहे.  चलिए इसको छोड़ते है ये आज का विषय नहीं है.

    मुझे सबसे ज्यादा अजीब लगा, वो था ट्विटर की सरंचना और इसका प्रशासन.
    दो भारतीय बुद्धिजीवी एक दूसरे  को गाली दे रहे यहाँ तक ठीक था , फिर एक इसकी शिकायत ट्विटर प्रशासन से होने लगी और उसने अपने व्यापारिक  विवेक के हिसाब से कुछ लोगो को ब्लॉक करना शुरू कर दिया. ट्विटर के इस कदम से प्रतिबंधित बुद्धिजीवी के समर्थक इसकी शिकायत ट्विटर प्रमुख से करने लगे. परिणाम को अभी यही छोड़ते है.

    क्या आपको  आज के ट्विटर और तब के अंग्रेजो  में कुछ समानता नहीं दिखती ?
    क्या आपको आज के  भारतीय बुद्धिजीवी , सोलहवीं शताब्दी  के राजा नहीं दिखते है ?
    क्या आपको अजीब नहीं लगता है जब एक बुद्धिजीवी ट्विटर प्रशासन  के सामने याचना करता है या तो किसी को प्रतिबंधित करने की या फिर प्रतिबन्ध हटाने की ??
    क्या आपको नहीं लगता है ट्विटर प्रशासन ने तब के राय बहादुर की तरह कुछ भारतीयों को नियुक्त किया है और इसके द्वारा  इन बुद्धिजीविओ के गुलाम मन पर शासन कर रहे है ?
    इन सवालों के जबाब में आप में छोड़ता हूँ.
    मुझे तो एक बात समझ में आती है की शारीरिक गुलामी से बड़ी है मानसिक गुलामी क्योंकि इसमें तो आपको ये भी समझ में नहीं आता की आप गुलाम है.
    तो क्या आप आजाद है ??
    जय हिन्द  !!

     

    (ट्विटर को एक उदाहरण की तरह लिया गया है)