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मांगना भी एक अद्भुत कला है

  • घटना है वर्ष 1971 की क्लास 9th, DAV school Chandigarh
    उन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था, स्कूल में एक दिन रिसेस में हम सब क्रिकेट मैच देख रहे थे, रिसेस खत्म होने की \ud83d\udd14 कब बजी पता ही नहीं चला, जब याद आया तो Already 10/ मिनट हो चुके थे।
    Monitor था क्लास का सो आगे मुझे ही चलना था, क्लास रूम पहुंचे देखा हमारे इंग्लिश के Grover sir, बैठे हुए थे, उन्होंने आंख के इशारे से अंदर आने को कहा और हम सब अंदर आ कर खड़े हो गए, उन्होंने ना बिओठने को कहा न ही कोई बैठा, वो बस मैं से घूर रहे थे हम सबको।
    मेरा डर के मारे बुरा हाल हो गया, ग्रोवर सर पिताजी को जानते थे तो पक्का शिकायत करेंगे और 8/10 झापड़ खाने को तैयार रहना चाहिए और अगर बात प्रिंसिपल सर तक पहुंची तो उनका खतरनाक काला डंडा कितना ठोकेगा पता नहीं। पीरियड खतम हुआ सर ने अपने थैला उठाया और क्लास से चले गए।आखरी पीरियड में peon आया बुलाने कि grover sir ने स्टाफ रूम में बुलाया, कांपता डरता स्टाफ रूम पहुंचा...
    सर बोले चलो मेरे साथ...पूछे कौन...
    और कोई 4 किलोमीटर पैदल चलने बाद वे मुझे PGI hospital ले आए और एक वार्ड में ले गए वहां के doctor ने उनका अभिवादन किया और सर ने फरमान सुनाया कि ये लड़का कल से स्कूल के बाद एक घंटे के लिए यहां आया करेगा, और जिस फौजी भाई को अपनी चिट्ठी लिखवानी हो या कुछ और करना हो ये करेगा।
    मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, और जब लौट रहे थे तो सर ने एक और हुकम सुनाया, आज शाम से तुम सेक्टर 7 के हर घर में जाओगे प्रतिदिन 5 घर और हर घर से 2 पोस्टकार्ड मांगोगे ना काम न ज़्यादा, रोने को हो गया था, ये कैसी punishment है...
    ख़ैर उसी दिन से शुरुआत की सबने खुशी खुशी 2 पोस्ट कार्ड दिए तो अच्छा लगा। फौजियों के पास जाता उनके पत्र पड़ता लिखता और उनसे बातें सुनता
    सप्ताह भर में मुझे इसमें मज़ा आने लगा।
    ठीक 4 बरस बाद 1975 में मेरी रक्तदान यात्रा शुरू हुई, और जब मैं मोटीवेटर बना तो मांगने की 4 साल पहले सीखी कला ने मुझे सहयोग दिया।
    अक्सर में सोचता हूं *ईश्वर* ने जो भी मुझसे करना था मुझे करवाने से पहले मुझे सिखा दिया किउझे करना कैसे है।।
    Thankyou Grover sir for this amazing punishment
    Kulbhushan Deep