बाढ़ की संभावनाये सामने हैं, और नदियों के किनारे घर बने है
आज के परिवेश मे दुष्यंत कुमार जी की ये पंक्ति सत्य लगती है।कभी हम पढ़ते थे मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है किन्तु आज मनुष्य एक सोशल मीडिया का प्राणी बनकर रह गया है।अपना समय ,चिन्तन सोच ,विचार औऱ रिश्ते सब इसमे छुपाते जा रहे है
हम सत्तर के दशक की बात करे तो तब लोगों का संयुक्त परिवार हुआ करता था परिवार के हर सदस्य के मन मे एक दूसरे के प्रति प्रेम व समर्पण था। आज एकल परिवार हो गए है ।पति पत्नी और बच्चों के साथ एक नाम और जुड़ा है मोबाइल ।अब रिश्ते गौण होते जा रहे है ।रिश्तों मे प्यार समर्पण विश्वास कही नही रहा यही वजह है कि भारत मे तलाक की दर बढ़ती जा रही हैं।
यह 2014 की रिपोर्ट के अनुसार
लखनऊ मे तलाक़ के 2000 मामले आए
बेगलुर मे तलाक़ के 3600 मामले आए ।
मुम्बई मे तलाक के5245 मामले आए
कोलकाता मे तलाक़ के 8345 मामले आए।
इन तलाक दर ने पिछले कुछ दशक मे 350% की बढ़ोतरी की ।ये क्यू है कि परिवार विद्यटित होते जा रहे है इस मे दोषी कौन है।
परिवार एक माला है जिसमे हर सदस्य मोती के समान है और हमारे बडे बुजुर्ग उस माला की डोर है ।जो मजबूती से परिवार को जोड़े रखती है ।आज बच्चे बडो की सुनते नही है और बड़े बच्चों को समझे नही है।हम अपनी गलती दूसरों पर डाल देते है ।अगर बिना गलती के भी गलती मन ली जाए इगो को हटा दिया जाए तो परिवार टूटगे नही।
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ चटकाय
टूटे से फिर न जुड़े जुड़े गाँठ पड़ जाये।
परिवार को जोड़ने का काम सिर्फ बड़े बुजुर्ग ही कर सकते है ।पहले कहते भी थे कि " घर मे जो बडा है वो घर की दहलीज के समान है"।इस का तात्पर्य यह कि वो अपने ईगो को छोड़ दे जो भी कोई कुछ कहे उसको सुने समझे और सही निर्णय दे।छोटो को भी बडो की हर बात मानने तभी घर एक मंदिर बन पाएगा ।
अनुपमा जैन