खुसरो दरिया प्रेम का सो उल्टी वाकी धार!
जो उबरा सो डूब गया; जो डूबा वो पार!!
प्रेम प्यार मोहब्बत इश्क नाम कई है पर है क्या प्यार । इस पर मन सवतः ही भटकता रहा है । क्या है प्रेम किसी का इंतज़ार या किसी को देख कर आखो मे चमक आना है प्यार । फिर कभी मन कहता है की प्यार समर्पण है । पर किसके प्रति समर्पण । सब से ज्यादा समर्पित सिर्फ पत्नी होती है पति के प्रति उसके परिवार के प्रति फिर क्या प्यार सिर्फ पति पत्नी के मध्य होता है । नहीं ये भी प्यार नहीं है । फिर प्यार क्या है क्युँ रहीम से लेकर ए.आर. रहमान तक इसका गुण गान करते नहीं थकते ।
मेरा मन मुझे कहता है प्यार तो उन स्वरों मे भी है जो एक छोटा दुधमुहा बच्चा अपनी माँ से कहता है ।
जो भाषा से परे है जीवन मृत्यु से दूर है वो है ।
प्यार समंदर से मिल उसमे खो जाना नदी का प्यार ही तो है । प्यार न पाना है न खोना है ।
प्यार अपनी ही परिभाषा मे रमा रहता है ।
जिसका न आदि है न अंत प्यार सिर्फ प्यार है
माँ जो अपने बच्चो को देती है वो अगाधा प्रेम है
मीरा ने कृष्ण से किया जिसको न पाने की आस थी न खोने का भय न देख पाने की उम्मीद थी न छुपाने की चाह जिस्म की परवाह थी न मान सम्मान की ललक वो प्यार था ।
चकवा का प्यार प्यार है वो पानी की बून्द का इंतज़ार प्यार है जिसके न मिलने पर प्राण त्याग देना प्यार है ।
पतगें को पता होता है की जलने से मर जाऊंगा फिर भी दीपक की रोशनी को छूना है प्यार ।
आजकल सोशियल नेटवर्क पर प्यार होना गलत है ।मत भटको इन झंझटो मे अपने लिए अपनों के लिए काम करना ही प्यार है ।
अनुपमा जैन