आज हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है । भष्टचार ,बेरोजगारी,अशिक्षा ,गरीबी ,या हमारी आने वाली पीढ़ी के संस्कार , या राजनीती ?
हम सब चीजों को दर किनार करते हुए अपनी आने वाली पीढ़ी पर फोकस करे। हमारी आने वाली पीढ़ी के विचार न तो मर्यादित न उनमे सयम रहा है। कमी कहा रहा गई क्यूँ हमने वो चीजे जो हमारे माता पिता ने सिखाई हमको हम अपने बच्चो को नहीं दे पा रहे है ।खेत में फसल लगाने के लिए मेहनत करनी होती है । खरपतवार स्वतः ही उग जाती है। मान सम्मान बच्चो को सीखना पड़ेगा जिद्दीपन या उद्दांत सिखानी नही है वो तो अपने आप बन जायेगे।
"पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं"
ये पंक्तिया दुष्यंत कुमार त्यागी जी की है। बच्चो को पहले ये सिखाते थे की अपने से पहले अपने परिवार की सोचो लेकिन अब सच में कहा गए संस्कार अब हम बच्चो को ब्राण्ड और फैशन सिखा रहे है । हमारे बच्चो को हम मशीन बना रहे है । उनको गाना भी आना चाहिए डांस भी वो क्रिकेट भी खेले और तैरना भी जाने वो 90% भी लाये और मैडल भी । वो बच्चा है उसको अपने हिस्साब से जीने दो आने तरीके से खेलने दो । संस्कार दो वो रेस के मैदान का घोडा नहीं है ।
फिल्मे समाज का आइना होता है। आज फिल्मो का व्यवसाईकरण हो गया है। लोग बेचते है दिशा नहीं देते । यही हाल सोशियल मिडिया का हो गया है। वो लोग बच्चो और बड़ो को जो परोस रहे है क्या उचित है ।
"आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है
पत्थरों में चीख़ हर्गिज़ कारगर होगी नहीं"
क्या हमारे अंदर मानवता जिन्दा है यदि है तो हिस्सा बने हमारा इसको आगे तक बढ़ाते है ।
आज समाज को फिर से एक कारण्टी की जरुरत है। मेरे विचारो पर दुष्यंत कुमार त्यागी जी की कविताओं की प्रखर छाप है उनकी ये पक्तियो को चरित्रतः करने की आवश्यकता है
"आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
पर अन्धेरा देख तू आकाश के तारे न देख ।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख । "
इस सब को अगर कोई बदल सकता है तो वो आप हो न की कोई और शुरुवात तो करो
"आसमान दूर सही और मै मजबूर सही
बदल न सकू रंग बादल का सही
विचारो की क्रांति लेन के विचार चाहिए
हा एक उड़न भरने के लिए पंख से पहले
होसलो का जूनून चाहिए " अनुपमा जैन