दार्द किआ होटा है बटायिन जीन किसी रोज़
कमल की गज़ल तुम को सुनेन जीन किसी रोज़
थाई unki zid k माई jaun unko manane
मुजको ये वेम था वो वो बुलाएन जीन किसी रोज़
कबी बी मेन टू सोचा बी नही था
वो इना मात्र दिल को दुखेन जीन किसी रोज़
हर रोज़ एनीन सेई येहे पूचती हुन माई
किआ रुख पे तबासम सजयिन जीन किसी रोज़?
Urney में parindon ko azaad fizaon mein में करते हैं
तुम्हे होन अग्रर लय ऐयिन जीन किसी रोज़
अपने सीटम काख लख खुद हाय साकी तुम
ज़खम ई जिगर तामाम लॉग देखेन जीन किसी रोज़!
मनीष पटेल द्वारा ...